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"साहिबे-बज़्म ने न पहचाना / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर
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11:52, 6 जुलाई 2007 के समय का अवतरण
साहिबे-बज़्म ने न पहचाना
कैसे मुमकिन हो यहाँ रह पाना
ज़िंदगानी मिरी रेहन रक्खी
और वो मांगते हैं नज़्राना
हुरुफ़-ए-इश्क़ तीन ही तो हैं
मुझपे भारी हैं मगर कह पाना
(रचनाकाल : 2003)