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"रामभरोसे / पूर्णिमा वर्मन" के अवतरणों में अंतर

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अमन चैन के भरम पल रहे -<br>
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रामभरोसे!<br>
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कैसे-कैसे शहर जल रहे -<br>
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राम भरोसे!<br>
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राम भरोसे!
जैसा चाहा बोया-काटा<br>
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दुनिया को मर्ज़ी से बाँटा<br>
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दुनिया को मर्ज़ी से बाँटा
उसकी थाली अपना काँटा<br>
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उसकी थाली अपना काँटा
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राम भरोसे!<br>
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दया धर्म नीलाम हो रहे
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नफ़रत के ऐलान बो रहे
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आँसू-आँसू गाल रो रहे
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बारूदों के ढेर ढो रहे
जप कर माला विश्वशांति की<br>
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जप कर माला विश्वशांति की
फिर भी जग के काम चल रहे-<br>
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फिर भी जग के काम चल रहे-
राम भरोसे!<br>
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राम भरोसे!
भाड़ में जाए रोटी दाना<br>
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भाड़ में जाए रोटी दाना
अपनी डफली अपना गाना<br>
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अपनी डफली अपना गाना
लाख मुखौटा चढे भीड़ में<br>
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चेहरा लेकिन है पहचाना<br>
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चेहरा लेकिन है पहचाना
जानबूझ कर क्यों प्रपंच में <br>
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प्रजातंत्र के हाथ जल रहे-<br>
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प्रजातंत्र के हाथ जल रहे-
राम भरोसे!<br><br>
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राम भरोसे!
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12:31, 27 जून 2014 के समय का अवतरण

अमन चैन के भरम पल रहे -
रामभरोसे!
कैसे-कैसे शहर जल रहे -
राम भरोसे!
जैसा चाहा बोया-काटा
दुनिया को मर्ज़ी से बाँटा
उसकी थाली अपना काँटा
इसको डाँटा उसको चाँटा
रामनाम की ओढ़ चदरिया
कैसे आदमज़ात छल रहे-
राम भरोसे!
दया धर्म नीलाम हो रहे
नफ़रत के ऐलान बो रहे
आँसू-आँसू गाल रो रहे
बारूदों के ढेर ढो रहे
जप कर माला विश्वशांति की
फिर भी जग के काम चल रहे-
राम भरोसे!
भाड़ में जाए रोटी दाना
अपनी डफली अपना गाना
लाख मुखौटा चढे भीड़ में
चेहरा लेकिन है पहचाना
जानबूझ कर क्यों प्रपंच में
प्रजातंत्र के हाथ जल रहे-
राम भरोसे!