"सदस्य वार्ता:महावीर जोशी पूलासर" के अवतरणों में अंतर
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क्यूँ जी सोरो करै मिनख | क्यूँ जी सोरो करै मिनख | ||
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परायै घरां गी बाताँ | परायै घरां गी बाताँ | ||
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सुण सुण गे | सुण सुण गे | ||
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जकी बा दुसराँ गै | जकी बा दुसराँ गै | ||
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घरां मे होवण लाग री है | घरां मे होवण लाग री है | ||
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बा ही तो तेरे घर मे हुवै | बा ही तो तेरे घर मे हुवै | ||
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तुं भींत रै चिप्योड़ो इनै | तुं भींत रै चिप्योड़ो इनै | ||
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बो भी तो बिने | बो भी तो बिने | ||
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चिप्योड़ो खड़यौ है | चिप्योड़ो खड़यौ है | ||
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क्यूँ कोनी सोचे तूं कै | क्यूँ कोनी सोचे तूं कै | ||
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भीँता गै भी कान होवै | भीँता गै भी कान होवै | ||
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आज तुं सुणसी बिंगी | आज तुं सुणसी बिंगी | ||
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काल बो तेरी सुणसी | काल बो तेरी सुणसी | ||
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क्यूँ सरमाँ मरै मिनख | क्यूँ सरमाँ मरै मिनख | ||
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मोरियो पगाँ कानी देख गै रोवै | मोरियो पगाँ कानी देख गै रोवै | ||
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रचना: महावीर जोशी पुलासर -सरदारशहर | रचना: महावीर जोशी पुलासर -सरदारशहर | ||
11:35, 1 मई 2020 का अवतरण
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क्यूँ जी सोरो करै मिनख
परायै घरां गी बाताँ
सुण सुण गे
जकी बा दुसराँ गै
घरां मे होवण लाग री है
बा ही तो तेरे घर मे हुवै
तुं भींत रै चिप्योड़ो इनै
बो भी तो बिने
चिप्योड़ो खड़यौ है
क्यूँ कोनी सोचे तूं कै
भीँता गै भी कान होवै
आज तुं सुणसी बिंगी
काल बो तेरी सुणसी
क्यूँ सरमाँ मरै मिनख
मोरियो पगाँ कानी देख गै रोवै
रचना: महावीर जोशी पुलासर -सरदारशहर
ये केसा संसार है
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है,
कुछ लॊगॊ कॆ पास है हीरॆ,
कुछ रॊटी बिन बिमार है,
कहतॆ धरती मा सबकी फिर भॆद क्यु बॆसुमार है,
ममता तॆरी तु है मा फिर माता क्यु लाचार है,
सुनॆ पडॆ है महल यहा फुटपाथॊ पर भरमार है,
कुछ बन गयॆ ताज यहा,
कुछ दानॆ कॊ मॊहताज है,
खुस यहा है पैसॆ सॆ सब,
भुखॊ सॆ नाराज है,
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है
रचना... महावीर जोशी पूलासर
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पुराणी_तस्वीर
कागज पर असीर बन जाती है उम्र की एक कब्र कुरेदता हूँ जब भी उसको पूछती है ...... उस्ताद मुझे कैद कर आजाद रहने वाले ...तुम्हारी ताब-ऐ-तासीर तबाह क्यूँ है ? उम्र के ......... किस पड़ाव पर हो ?