"सदस्य वार्ता:महावीर जोशी पूलासर" के अवतरणों में अंतर
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कुरेदता हूँ | कुरेदता हूँ | ||
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जब भी उसको | जब भी उसको | ||
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पूछती है ...... उस्ताद | पूछती है ...... उस्ताद | ||
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मुझे कैद कर आजाद | मुझे कैद कर आजाद | ||
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रहने वाले ...तुम्हारी | रहने वाले ...तुम्हारी | ||
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ताब-ऐ-तासीर | ताब-ऐ-तासीर | ||
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उम्र के ......... | उम्र के ......... | ||
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किस पड़ाव पर हो ? | किस पड़ाव पर हो ? |
11:37, 1 मई 2020 का अवतरण
प्रिय महावीर जोशी पूलासर, कविता कोश पर आपका स्वागत है! कविता कोश हिन्दी काव्य को अंतरजाल पर स्थापित करने का एक स्वयंसेवी प्रयास है। इस कोश को आप कैसे प्रयोग कर सकते हैं और इसकी वृद्धि में आप किस तरह योगदान दे सकते हैं इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सूचनायें नीचे दी जा रही हैं। इन्हे कृपया ध्यानपूर्वक पढ़े। |
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क्यूँ जी सोरो करै मिनख
परायै घरां गी बाताँ
सुण सुण गे
जकी बा दुसराँ गै
घरां मे होवण लाग री है
बा ही तो तेरे घर मे हुवै
तुं भींत रै चिप्योड़ो इनै
बो भी तो बिने
चिप्योड़ो खड़यौ है
क्यूँ कोनी सोचे तूं कै
भीँता गै भी कान होवै
आज तुं सुणसी बिंगी
काल बो तेरी सुणसी
क्यूँ सरमाँ मरै मिनख
मोरियो पगाँ कानी देख गै रोवै
रचना: महावीर जोशी पुलासर -सरदारशहर
ये केसा संसार है
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है,
कुछ लॊगॊ कॆ पास है हीरॆ,
कुछ रॊटी बिन बिमार है,
कहतॆ धरती मा सबकी फिर भॆद क्यु बॆसुमार है,
ममता तॆरी तु है मा फिर माता क्यु लाचार है,
सुनॆ पडॆ है महल यहा फुटपाथॊ पर भरमार है,
कुछ बन गयॆ ताज यहा,
कुछ दानॆ कॊ मॊहताज है,
खुस यहा है पैसॆ सॆ सब,
भुखॊ सॆ नाराज है,
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है
रचना... महावीर जोशी पूलासर
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पुराणी_तस्वीर
कागज पर असीर
बन जाती है
उम्र की एक कब्र
कुरेदता हूँ
जब भी उसको
पूछती है ...... उस्ताद
मुझे कैद कर आजाद
रहने वाले ...तुम्हारी
ताब-ऐ-तासीर
तबाह क्यूँ है ?
उम्र के .........
किस पड़ाव पर हो ?