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"पहले मन फिर वचन बिक गया / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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22:46, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
पहले मन फिर वचन बिक गया
व्यक्ति का मूलधन बिक गया
देह के गर्म बाज़ार में
हर कली, हर सुमन बिक गया
रक्षकों को खबर ही नहीं
और चुपके से वन बिक गया
'द्रौपदी' नग्न होने को है
इस सदी का किशन बिक गया
उसका बस एक ही स्वपन था
अंतत: वो स्वपन बिक गया
डगमगाने लगी है तुला
न्याय का संतुलन बिक गया
'सैटेलाइट' के आदेश पर
इस धरा का गगन बिक गया