भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दे के आवाज़ ग़म के मारो को / सरदार अंजुम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=सरदार अंजुम | |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | ||
− | + | ||
दे के आवाज़ ग़म के मारो को<br> | दे के आवाज़ ग़म के मारो को<br> | ||
मत परेशाँ करो बहारों को<br><br> | मत परेशाँ करो बहारों को<br><br> |
14:29, 8 मई 2009 के समय का अवतरण
दे के आवाज़ ग़म के मारो को
मत परेशाँ करो बहारों को
इनसे शायद मिले सुरागे-हयात
आओ सज़दा करें मज़ारों को
वो ख़िज़ा से है आज शर्मिन्दा
जिसने रुसवा किया बहारों को
दिलकशी देख कर तालातुम की
हमनें देखा नहीं क़िनारों को
हम ख़िज़ा से गले मिले "अंजुम"
लोग रोते रहे बहारों को