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"जिन प्रेम रस चाखा नहीं / प्यारेलाल शोकी" के अवतरणों में अंतर

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जिन प्रेम रस चाखा नहीं, अमृत पिया तो क्या हुआ ।
 
जिन प्रेम रस चाखा नहीं, अमृत पिया तो क्या हुआ ।
 
 
जिन इश्क में सर ना दिया, सो जग जिया तो क्या हुआ ।।   
 
जिन इश्क में सर ना दिया, सो जग जिया तो क्या हुआ ।।   
  
 
ताबीज औ तूमार में सारी उमर जाया किसी,
 
ताबीज औ तूमार में सारी उमर जाया किसी,
 
 
सीखे मगर हीले घने, मुल्ला हुआ तो क्या हुआ ।   
 
सीखे मगर हीले घने, मुल्ला हुआ तो क्या हुआ ।   
  
 
जोगी न जंगम से बड़ा, रंग लाल कपड़े पहन के,
 
जोगी न जंगम से बड़ा, रंग लाल कपड़े पहन के,
 
 
वाकिफ़ नहीं इस हाल से कपड़ रँगा तो क्या हुआ ।   
 
वाकिफ़ नहीं इस हाल से कपड़ रँगा तो क्या हुआ ।   
  
 
जिउ में नहीं पी का दरद, बैठा मशायख होय कर,
 
जिउ में नहीं पी का दरद, बैठा मशायख होय कर,
 
 
मन का रहत फिरता नहीं सुमिरन किया तो क्या हुआ ।   
 
मन का रहत फिरता नहीं सुमिरन किया तो क्या हुआ ।   
  
 
जब इश्क के दरियाव में, होता नहीं गरकाब ते,
 
जब इश्क के दरियाव में, होता नहीं गरकाब ते,
 
 
गंगा, बनारस, द्वारका पनघट फिरा तो क्या हुआ ।   
 
गंगा, बनारस, द्वारका पनघट फिरा तो क्या हुआ ।   
  
 
मारम जगत को छोड़कर, दिल तन से ते खिलवत पकड़,
 
मारम जगत को छोड़कर, दिल तन से ते खिलवत पकड़,
 
 
शोकी पियारेलाल बिन, सबसे मिला तो क्या हुआ ।
 
शोकी पियारेलाल बिन, सबसे मिला तो क्या हुआ ।
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16:43, 24 मई 2009 का अवतरण

जिन प्रेम रस चाखा नहीं, अमृत पिया तो क्या हुआ ।
जिन इश्क में सर ना दिया, सो जग जिया तो क्या हुआ ।।

ताबीज औ तूमार में सारी उमर जाया किसी,
सीखे मगर हीले घने, मुल्ला हुआ तो क्या हुआ ।

जोगी न जंगम से बड़ा, रंग लाल कपड़े पहन के,
वाकिफ़ नहीं इस हाल से कपड़ रँगा तो क्या हुआ ।

जिउ में नहीं पी का दरद, बैठा मशायख होय कर,
मन का रहत फिरता नहीं सुमिरन किया तो क्या हुआ ।

जब इश्क के दरियाव में, होता नहीं गरकाब ते,
गंगा, बनारस, द्वारका पनघट फिरा तो क्या हुआ ।

मारम जगत को छोड़कर, दिल तन से ते खिलवत पकड़,
शोकी पियारेलाल बिन, सबसे मिला तो क्या हुआ ।