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+ | * [[एक शबे-ग़म वो भी थी जिसमें जी भर आये तो अश्क़ बहायें / फ़िराक़ गोरखपुरी]] | ||
+ | * [[बन्दगी से कभी नहीं मिलती / फ़िराक़ गोरखपुरी]] | ||
+ | * [[बे ठिकाने है दिले-ग़मगीं ठिकाने की कहो / फ़िराक़ गोरखपुरी]] | ||
+ | * [[उजाड़ बन के कुछ आसार से चमन में मिले / फ़िराक़ गोरखपुरी]] | ||
+ | * [[वो आँख जबान हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी]] | ||
+ | * [[हाल सुना फ़सानागो, लब की फ़ुर्सूंगरी के भी / फ़िराक़ गोरखपुरी]] |
23:38, 25 अगस्त 2009 का अवतरण
गुले-नग़मा
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रचनाकार | फ़िराक़ गोरखपुरी |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
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ISBN | |
विविध | इस पुस्तक के लिये फ़िराक़ गोरखपुरी को 1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। |
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- आँखों में जो बात हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी
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- है अभी महताब बाक़ी और बाक़ी है शराब / फ़िराक़ गोरखपुरी
- दीदनी है नरगिसे - ख़ामोश का तर्ज़े - ख़िताब / फ़िराक़ गोरखपुरी
- रात भी नींद भी, कहानी भी / फ़िराक़ गोरखपुरी
- एक शबे-ग़म वो भी थी जिसमें जी भर आये तो अश्क़ बहायें / फ़िराक़ गोरखपुरी
- बन्दगी से कभी नहीं मिलती / फ़िराक़ गोरखपुरी
- बे ठिकाने है दिले-ग़मगीं ठिकाने की कहो / फ़िराक़ गोरखपुरी
- उजाड़ बन के कुछ आसार से चमन में मिले / फ़िराक़ गोरखपुरी
- वो आँख जबान हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- हाल सुना फ़सानागो, लब की फ़ुर्सूंगरी के भी / फ़िराक़ गोरखपुरी