भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य,
 
पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य,
याही तत्त्व-ज्ञान कौ महत्व स्रुति गायौ है ।
+
::याही तत्त्व-ज्ञान कौ महत्व स्रुति गायौ है ।
 
तुम तौ बिवेक रतनाकर कहौ क्यों पुनि,
 
तुम तौ बिवेक रतनाकर कहौ क्यों पुनि,
भेद पंचभौतिक के रूप में रचायौ है ॥
+
::भेद पंचभौतिक के रूप में रचायौ है ॥
 
गोपिनि मैं, आप मैं बियोग औ’ संयोग हूँ मैं,
 
गोपिनि मैं, आप मैं बियोग औ’ संयोग हूँ मैं,
एकै भाव चाहिये सचोप ठहरायौ है ।
+
::एकै भाव चाहिये सचोप ठहरायौ है ।
 
आपु ही सौं आपु कौ मिलाप औ’ बिछोह कहा,
 
आपु ही सौं आपु कौ मिलाप औ’ बिछोह कहा,
मोह यह मिथ्या सुख दुख सब ठायौ है ॥15॥
+
::मोह यह मिथ्या सुख दुख सब ठायौ है ॥15॥
 
</poem>
 
</poem>

09:33, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य,
याही तत्त्व-ज्ञान कौ महत्व स्रुति गायौ है ।
तुम तौ बिवेक रतनाकर कहौ क्यों पुनि,
भेद पंचभौतिक के रूप में रचायौ है ॥
गोपिनि मैं, आप मैं बियोग औ’ संयोग हूँ मैं,
एकै भाव चाहिये सचोप ठहरायौ है ।
आपु ही सौं आपु कौ मिलाप औ’ बिछोह कहा,
मोह यह मिथ्या सुख दुख सब ठायौ है ॥15॥