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"पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य, | पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य, | ||
− | याही तत्त्व-ज्ञान कौ महत्व स्रुति गायौ है । | + | ::याही तत्त्व-ज्ञान कौ महत्व स्रुति गायौ है । |
तुम तौ बिवेक रतनाकर कहौ क्यों पुनि, | तुम तौ बिवेक रतनाकर कहौ क्यों पुनि, | ||
− | भेद पंचभौतिक के रूप में रचायौ है ॥ | + | ::भेद पंचभौतिक के रूप में रचायौ है ॥ |
गोपिनि मैं, आप मैं बियोग औ’ संयोग हूँ मैं, | गोपिनि मैं, आप मैं बियोग औ’ संयोग हूँ मैं, | ||
− | एकै भाव चाहिये सचोप ठहरायौ है । | + | ::एकै भाव चाहिये सचोप ठहरायौ है । |
आपु ही सौं आपु कौ मिलाप औ’ बिछोह कहा, | आपु ही सौं आपु कौ मिलाप औ’ बिछोह कहा, | ||
− | मोह यह मिथ्या सुख दुख सब ठायौ है ॥15॥ | + | ::मोह यह मिथ्या सुख दुख सब ठायौ है ॥15॥ |
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09:33, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण
पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य,
याही तत्त्व-ज्ञान कौ महत्व स्रुति गायौ है ।
तुम तौ बिवेक रतनाकर कहौ क्यों पुनि,
भेद पंचभौतिक के रूप में रचायौ है ॥
गोपिनि मैं, आप मैं बियोग औ’ संयोग हूँ मैं,
एकै भाव चाहिये सचोप ठहरायौ है ।
आपु ही सौं आपु कौ मिलाप औ’ बिछोह कहा,
मोह यह मिथ्या सुख दुख सब ठायौ है ॥15॥