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"हेत खेत माँहि खोदि खाईं सुद्ध स्वारथ की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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हेत खेत माँहि खोदि खाईं सुद्ध स्वारथ की,
 
हेत खेत माँहि खोदि खाईं सुद्ध स्वारथ की,
प्रेम-तृन गोपिं राख्यौ तापै गमनौ नहीं ।
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::प्रेम-तृन गोपिं राख्यौ तापै गमनौ नहीं ।
 
करनी प्रतीति-काज करनी बनावट की,
 
करनी प्रतीति-काज करनी बनावट की,
राखी ताति हेरि हियँ हौंसनि सनौ नहीं ॥
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::राखी ताति हेरि हियँ हौंसनि सनौ नहीं ॥
 
घात में लगे हैं ये बिसासी ब्रजवासी सबै,
 
घात में लगे हैं ये बिसासी ब्रजवासी सबै,
इनके अनोखै छल-छंदनि छनौ नहीं ।
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::इनके अनोखै छल-छंदनि छनौ नहीं ।
 
बारनि कितेक तुम्हें बारनि कितेक करैं,
 
बारनि कितेक तुम्हें बारनि कितेक करैं,
बारन उबारन ह्वै बारन बनौ नहीं ॥14॥
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::बारन उबारन ह्वै बारन बनौ नहीं ॥14॥
 
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09:34, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

हेत खेत माँहि खोदि खाईं सुद्ध स्वारथ की,
प्रेम-तृन गोपिं राख्यौ तापै गमनौ नहीं ।
करनी प्रतीति-काज करनी बनावट की,
राखी ताति हेरि हियँ हौंसनि सनौ नहीं ॥
घात में लगे हैं ये बिसासी ब्रजवासी सबै,
इनके अनोखै छल-छंदनि छनौ नहीं ।
बारनि कितेक तुम्हें बारनि कितेक करैं,
बारन उबारन ह्वै बारन बनौ नहीं ॥14॥