"अंधेरे में / भाग 6 / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध | |रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध | ||
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− | + | <poem> | |
− | + | सीन बदलता है | |
− | + | सुनसान चौराहा साँवला फैला, | |
− | + | बीच में वीरान गेरूआ घण्टाघर, | |
− | + | ऊपर कत्थई बुज़र्ग गुम्बद, | |
− | सीन बदलता है | + | साँवली हवाओं में काल टहलता है। |
− | सुनसान चौराहा साँवला फैला, | + | रात में पीले हैं चार घड़ी-चेहरे, |
− | बीच में वीरान गेरूआ घण्टाघर, | + | मिनिट के काँटों की चार अलग गतियाँ, |
− | ऊपर कत्थई बुज़र्ग गुम्बद, | + | चार अलग कोण, |
− | साँवली हवाओं में काल टहलता है। | + | कि चार अलग संकेत |
− | रात में पीले हैं चार घड़ी-चेहरे, | + | (मनस् में गतिमान् चार अलग मतियाँ) |
− | मिनिट के काँटों की चार अलग गतियाँ, | + | खम्भों पर बिजली की गरदनें लटकीं, |
− | चार अलग कोण, | + | शर्म से जलते हुए बल्बों के आस-पास |
− | कि चार अलग संकेत | + | बेचैन ख़यालों के पंखों के कीड़े |
− | (मनस् में गतिमान् चार अलग मतियाँ) | + | उड़ते हैं गोल-गोल |
− | खम्भों पर बिजली की गरदनें लटकीं, | + | मचल-मचलकर। |
− | शर्म से जलते हुए बल्बों के आस-पास | + | घण्टाघर तले ही |
− | बेचैन ख़यालों के पंखों के कीड़े | + | पंखों के टुकड़े व तिनके। |
− | उड़ते हैं गोल-गोल | + | गुम्बद-विवर में बैठे हुए बूढ़े |
− | मचल-मचलकर। | + | असम्भव पक्षी |
− | घण्टाघर तले ही | + | बहुत तेज़ नज़रों से देखते हैं सब ओर, |
− | पंखों के टुकड़े व तिनके। | + | मानो कि इरादे |
− | गुम्बद-विवर में बैठे हुए बूढ़े | + | भयानक चमकते। |
− | असम्भव पक्षी | + | सुनसान चौराहा |
− | बहुत तेज़ नज़रों से देखते हैं सब ओर, | + | बिखरी हैं गतियाँ, बिखरी है रफ़्तार, |
− | मानो कि इरादे | + | गश्त में घूमती है कोई दुष्ट इच्छा। |
− | भयानक चमकते। | + | भयानक सिपाही जाने किस थकी हुई झोंक में |
− | सुनसान चौराहा | + | अँधेरे में सुलगाता सिगरेट अचानक |
− | बिखरी हैं गतियाँ, बिखरी है रफ़्तार, | + | ताँबे से चेहरे की ऐंठ झलकती। |
− | गश्त में घूमती है कोई दुष्ट इच्छा। | + | पथरीली सलवट |
− | भयानक सिपाही जाने किस थकी हुई झोंक में | + | दियासलाई की पल-भर लौ में |
− | अँधेरे में सुलगाता सिगरेट अचानक | + | साँप-सी लगती। |
− | ताँबे से चेहरे की ऐंठ झलकती। | + | पर उसके चेहरे का रंग बदलता है हर बार, |
− | पथरीली सलवट | + | मानो अनपेक्षित कहीं न कुछ हो... |
− | दियासलाई की पल-भर लौ में | + | वह ताक रहा है-- |
− | साँप-सी लगती। | + | संगीन नोंकों पर टिका हुआ |
− | पर उसके चेहरे का रंग बदलता है हर बार, | + | साँवला बन्दूक़-जत्था |
− | मानो अनपेक्षित कहीं न कुछ हो... | + | गोल त्रिकोण एक बनाये खड़ा जो |
− | वह ताक रहा है-- | + | चौक के बीच में!! |
− | संगीन नोंकों पर टिका हुआ | + | एक ओर |
− | साँवला बन्दूक़-जत्था | + | टैंकों का दस्ता भी खड़े-खड़े ऊँघता, |
− | गोल त्रिकोण एक बनाये खड़ा जो | + | परन्तु अड़ा है!! |
− | चौक के बीच में!! | + | |
− | एक ओर | + | |
− | टैंकों का दस्ता भी खड़े-खड़े ऊँघता, | + | |
− | परन्तु अड़ा है!! | + | |
− | भागता मैं दम छोड़, | + | भागता मैं दम छोड़, |
− | घूम गया कई मोड़ | + | घूम गया कई मोड़ |
− | भागती है चप्पल, चटपट आवाज़ | + | भागती है चप्पल, चटपट आवाज़ |
− | चाँटों-सी पड़ती। | + | चाँटों-सी पड़ती। |
− | पैरों के नीचे का कींच उछलकर | + | पैरों के नीचे का कींच उछलकर |
− | चेहरे पर छाती पर, पड़ता है सहसा, | + | चेहरे पर छाती पर, पड़ता है सहसा, |
− | ग्लानि की मितली। | + | ग्लानि की मितली। |
− | गलियों का गोल-गोल खोह अँधेरा | + | गलियों का गोल-गोल खोह अँधेरा |
− | चेहरे पर आँखों पर करता है हमला। | + | चेहरे पर आँखों पर करता है हमला। |
− | अजीब उमस-बास | + | अजीब उमस-बास |
− | गलियों का रुँधा हुआ उच्छवास | + | गलियों का रुँधा हुआ उच्छवास |
− | भागता हूँ दम छोड़, | + | भागता हूँ दम छोड़, |
− | घूम गया कई मोड़। | + | घूम गया कई मोड़। |
− | धुँधले-से आकार कहीं-कहीं दीखते, | + | धुँधले-से आकार कहीं-कहीं दीखते, |
− | भय के? या घर के? कह नहीं सकता | + | भय के? या घर के? कह नहीं सकता |
− | आता है अकस्मात् कोलतार-रास्ता | + | आता है अकस्मात् कोलतार-रास्ता |
− | लम्बा व चौड़ा व स्याह व ठंडा, | + | लम्बा व चौड़ा व स्याह व ठंडा, |
− | बेचैन आँखें ये देखती हैं सब ओर। | + | बेचैन आँखें ये देखती हैं सब ओर। |
− | कहीं कोई नहीं है, | + | कहीं कोई नहीं है, |
− | नहीं कहीं कोई भी। | + | नहीं कहीं कोई भी। |
− | श्याम आकाश में, संकेत-भाषा-सी तारों की आँखें | + | श्याम आकाश में, संकेत-भाषा-सी तारों की आँखें |
− | चमचमा रही हैं। | + | चमचमा रही हैं। |
− | मेरा दिल ढिबरी-सा टिमटिमा रहा है। | + | मेरा दिल ढिबरी-सा टिमटिमा रहा है। |
− | कोई मुझे खींचता है रास्ते के बीच ही। | + | कोई मुझे खींचता है रास्ते के बीच ही। |
− | जादू से बँधा हुआ चल पड़ा उस ओर। | + | जादू से बँधा हुआ चल पड़ा उस ओर। |
− | सपाट सूने में ऊँची-सी खड़ी जो | + | सपाट सूने में ऊँची-सी खड़ी जो |
− | तिलक की पाषाण-मूर्ति है निःसंग | + | तिलक की पाषाण-मूर्ति है निःसंग |
− | स्तब्ध जड़ीभूत... | + | स्तब्ध जड़ीभूत... |
− | देखता हूँ उसको परन्तु, ज्यों ही मैं पास पहुँचता | + | देखता हूँ उसको परन्तु, ज्यों ही मैं पास पहुँचता |
− | पाषाण-पीठिका हिलती-सी लगती | + | पाषाण-पीठिका हिलती-सी लगती |
− | अरे, अरे यह क्या!! | + | अरे, अरे यह क्या!! |
− | कण-कण काँप रहे जिनमें-से झरते | + | कण-कण काँप रहे जिनमें-से झरते |
− | नीले इलेक्ट्रान | + | नीले इलेक्ट्रान |
− | सब ओर गिर रही हैं चिनगियाँ नीली | + | सब ओर गिर रही हैं चिनगियाँ नीली |
− | मूर्ति के तन से झरते हैं अंगार। | + | मूर्ति के तन से झरते हैं अंगार। |
− | मुस्कान पत्थरी होठों पर काँपी, | + | मुस्कान पत्थरी होठों पर काँपी, |
− | आँखों में बिजली के फूल सुलगते। | + | आँखों में बिजली के फूल सुलगते। |
− | इतने में यह क्या!! | + | इतने में यह क्या!! |
− | भव्य ललाट की नासिका में से | + | भव्य ललाट की नासिका में से |
− | बह रहा ख़ून न जाने कब से | + | बह रहा ख़ून न जाने कब से |
− | लाल-लाल गरमीला रक्त टपकता | + | लाल-लाल गरमीला रक्त टपकता |
− | (ख़ून के धब्बों से भरा अँगरखा) | + | (ख़ून के धब्बों से भरा अँगरखा) |
− | मानो कि अतिशय चिन्ता के कारण | + | मानो कि अतिशय चिन्ता के कारण |
− | मस्तक-कोष ही फूट पड़े सहसा | + | मस्तक-कोष ही फूट पड़े सहसा |
− | मस्तक-रक्त ही बह उठा नासिका में से। | + | मस्तक-रक्त ही बह उठा नासिका में से। |
− | हाय, हाय, पितः पितः ओ, | + | हाय, हाय, पितः पितः ओ, |
− | चिन्ता में इतने न उलझो | + | चिन्ता में इतने न उलझो |
− | हम अभी ज़िन्दा हैं ज़िन्दा, | + | हम अभी ज़िन्दा हैं ज़िन्दा, |
− | चिन्ता क्या है!! | + | चिन्ता क्या है!! |
− | मैं उस पाषाण-मूर्ति के ठण्डे | + | मैं उस पाषाण-मूर्ति के ठण्डे |
− | पैरों की छाती से बरबस चिपका | + | पैरों की छाती से बरबस चिपका |
− | रुआँसा-सा होता | + | रुआँसा-सा होता |
− | देह में तन गये करुणा के काँटे | + | देह में तन गये करुणा के काँटे |
− | छाती पर, सिर पर, बाँहों पर मेरे | + | छाती पर, सिर पर, बाँहों पर मेरे |
− | गिरती हैं नीली | + | गिरती हैं नीली |
− | बिजली की चिनगियाँ | + | बिजली की चिनगियाँ |
− | रक्त टपकता है हृदय में मेरे | + | रक्त टपकता है हृदय में मेरे |
− | आत्मा में बहता-सा लगता | + | आत्मा में बहता-सा लगता |
− | ख़ून का तालाब। | + | ख़ून का तालाब। |
− | इतने में छाती के भीतर ठक्-ठक् | + | इतने में छाती के भीतर ठक्-ठक् |
− | सिर में है धड़-धड़ !! कट रही हड्डी!! | + | सिर में है धड़-धड़ !! कट रही हड्डी!! |
− | फ़िक्र जबरदस्त!! | + | फ़िक्र जबरदस्त!! |
− | विवेक चलाता तीखा-सा रन्दा | + | विवेक चलाता तीखा-सा रन्दा |
− | चल रहा बासूला | + | चल रहा बासूला |
− | छीले जा रहा मेरा निजत्व ही कोई | + | छीले जा रहा मेरा निजत्व ही कोई |
− | भयानक ज़िद कोई जाग उठी मेरे भी अन्दर | + | भयानक ज़िद कोई जाग उठी मेरे भी अन्दर |
− | हठ कोई बड़ा भारी उठ खड़ा हुआ है। | + | हठ कोई बड़ा भारी उठ खड़ा हुआ है। |
− | इतने में आसमान काँपा व धाँय-धाँय | + | इतने में आसमान काँपा व धाँय-धाँय |
− | बन्दूक़ धड़ाका | + | बन्दूक़ धड़ाका |
− | बिजली की रफ़्तार पैरों में घूम गयी। | + | बिजली की रफ़्तार पैरों में घूम गयी। |
− | खोहों-सी गलियों के अँधेरे में एक ओर | + | खोहों-सी गलियों के अँधेरे में एक ओर |
− | मैं थक बैठ गया, | + | मैं थक बैठ गया, |
− | सोचने-विचारने। | + | सोचने-विचारने। |
− | अँधेरे में डूबे मकानों के छप्परों के पार से | + | अँधेरे में डूबे मकानों के छप्परों के पार से |
− | रोने की पतली-सी आवाज़ | + | रोने की पतली-सी आवाज़ |
− | सूने में काँप रही काँप रही दूर तक | + | सूने में काँप रही काँप रही दूर तक |
− | कराहों की लहरों में पाशव प्राकृत | + | कराहों की लहरों में पाशव प्राकृत |
− | वेदना भयानक थरथरा रही है। | + | वेदना भयानक थरथरा रही है। |
− | मैं उसे सुनने का करता हूँ यत्न | + | मैं उसे सुनने का करता हूँ यत्न |
− | कि देखता क्या हूँ- | + | कि देखता क्या हूँ- |
− | सामने मेरे | + | सामने मेरे |
− | सर्दी में बोरे को ओढ़कर | + | सर्दी में बोरे को ओढ़कर |
− | कोई एक अपने | + | कोई एक अपने |
− | हाथ-पैर समेटे | + | हाथ-पैर समेटे |
− | काँप रहा, हिल रहा---वह मर जायगा। | + | काँप रहा, हिल रहा---वह मर जायगा। |
− | इतने में वह सिर खोलता है सहसा | + | इतने में वह सिर खोलता है सहसा |
− | बाल बिखरते | + | बाल बिखरते |
− | दीखते हैं कान कि | + | दीखते हैं कान कि |
− | फिर मुँह खोलता है, वह कुछ | + | फिर मुँह खोलता है, वह कुछ |
− | बुदबुदा रहा है, | + | बुदबुदा रहा है, |
− | किन्तु मैं सुनता ही नहीं हूँ। | + | किन्तु मैं सुनता ही नहीं हूँ। |
− | ध्यान से देखता हूँ--वह कोई परिचित | + | ध्यान से देखता हूँ--वह कोई परिचित |
− | जिसे खूब देखा था, निरखा था कई बार | + | जिसे खूब देखा था, निरखा था कई बार |
− | पर पाया नहीं था। | + | पर पाया नहीं था। |
− | अरे हाँ, वह तो... | + | अरे हाँ, वह तो... |
− | विचार उठते ही दब गये, | + | विचार उठते ही दब गये, |
− | सोचने का साहस सब चला गया है। | + | सोचने का साहस सब चला गया है। |
− | वह मुख--अरे, वह मुख, वे गाँधी जी!! | + | वह मुख--अरे, वह मुख, वे गाँधी जी!! |
− | इस तरह पंगु!! | + | इस तरह पंगु!! |
− | आश्चर्य!! | + | आश्चर्य!! |
− | नहीं, नहीं वे जाँच-पड़ताल | + | नहीं, नहीं वे जाँच-पड़ताल |
− | रूप बदलकर करते हैं चुपचाप। | + | रूप बदलकर करते हैं चुपचाप। |
− | सुराग़रसी-सी कुछ। | + | सुराग़रसी-सी कुछ। |
− | अँधेरे की स्याही में डूबे हुए देव को सम्मुख पाकर | + | अँधेरे की स्याही में डूबे हुए देव को सम्मुख पाकर |
− | मैं अति दीन हो जाता हूँ पास कि | + | मैं अति दीन हो जाता हूँ पास कि |
− | बिजली का झटका | + | बिजली का झटका |
− | कहता है-"भाग जा, हट जा | + | कहता है-"भाग जा, हट जा |
− | हम हैं गुज़र गये ज़माने के चेहरे | + | हम हैं गुज़र गये ज़माने के चेहरे |
− | आगे तू बढ़ जा।" | + | आगे तू बढ़ जा।" |
− | किन्तु मैं देखा किया उस मुख को। | + | किन्तु मैं देखा किया उस मुख को। |
− | गम्भीर दृढ़ता की सलवटें वैसी ही, | + | गम्भीर दृढ़ता की सलवटें वैसी ही, |
− | शब्दों में गुरुता। | + | शब्दों में गुरुता। |
− | वे कह रहे हैं-- | + | वे कह रहे हैं-- |
− | "दुनिया न कचरे का ढेर कि जिस पर | + | "दुनिया न कचरे का ढेर कि जिस पर |
− | दानों को चुगने चढ़ा हुआ कोई भी कुक्कुट | + | दानों को चुगने चढ़ा हुआ कोई भी कुक्कुट |
− | कोई भी मुरग़ा | + | कोई भी मुरग़ा |
− | यदि बाँग दे उठे जोरदार | + | यदि बाँग दे उठे जोरदार |
− | बन जाये मसीहा" | + | बन जाये मसीहा" |
− | वे कह रहे हैं-- | + | वे कह रहे हैं-- |
− | मिट्टी के लोंदे में किरगीले कण-कण | + | मिट्टी के लोंदे में किरगीले कण-कण |
− | गुण हैं, | + | गुण हैं, |
− | जनता के गुणों से ही सम्भव | + | जनता के गुणों से ही सम्भव |
− | भावी का उद्भव ... | + | भावी का उद्भव ... |
− | गम्भीर शब्द वे और आगे बढ़ गये, | + | गम्भीर शब्द वे और आगे बढ़ गये, |
− | जाने क्या कह गये!! | + | जाने क्या कह गये!! |
− | मैं अति उद्विग्न! | + | मैं अति उद्विग्न! |
− | एकाएक उठ पड़ा आत्मा का पिंजर | + | एकाएक उठ पड़ा आत्मा का पिंजर |
− | मूर्ति की ठठरी। | + | मूर्ति की ठठरी। |
− | नाक पर चश्मा, हाथ में डण्डा, | + | नाक पर चश्मा, हाथ में डण्डा, |
− | कन्धे पर बोरा, बाँह में बच्चा। | + | कन्धे पर बोरा, बाँह में बच्चा। |
− | आश्चर्य!! अद्भुत! यह शिशु कैसे!! | + | आश्चर्य!! अद्भुत! यह शिशु कैसे!! |
− | मुसकरा उस द्युति-पुरुष ने कहा तब-- | + | मुसकरा उस द्युति-पुरुष ने कहा तब-- |
− | "मेरे पास चुपचाप सोया हुआ यह था। | + | "मेरे पास चुपचाप सोया हुआ यह था। |
− | सँभालना इसको, सुरक्षित रखना" | + | सँभालना इसको, सुरक्षित रखना" |
− | मैं कुछ कहने को होता हूँ इतने में वहाँ पर | + | मैं कुछ कहने को होता हूँ इतने में वहाँ पर |
− | कहीं कोई नहीं है, कहीं कोई नहीं है: | + | कहीं कोई नहीं है, कहीं कोई नहीं है: |
− | और ज़्यादा गहरा व और ज़्यादा अकेला | + | और ज़्यादा गहरा व और ज़्यादा अकेला |
− | अँधेरे का फैलाव! | + | अँधेरे का फैलाव! |
− | बालक लिपटा है मेरे इस गले से चुपचाप, | + | बालक लिपटा है मेरे इस गले से चुपचाप, |
− | छाती से कन्धे से चिपका है नन्हा-सा आकाश | + | छाती से कन्धे से चिपका है नन्हा-सा आकाश |
− | स्पर्श है सुकुमार प्यार-भरा कोमल | + | स्पर्श है सुकुमार प्यार-भरा कोमल |
− | किन्तु है भार का गम्भीर अनुभव | + | किन्तु है भार का गम्भीर अनुभव |
− | भावी की गन्ध और दूरियाँ अँधेरी | + | भावी की गन्ध और दूरियाँ अँधेरी |
− | आकाशी तारों को साथ लिये हुए मैं | + | आकाशी तारों को साथ लिये हुए मैं |
− | चला जा रहा हूँ | + | चला जा रहा हूँ |
− | घुसता ही जाता हूँ फ़ासलों की खोहों तहों में। | + | घुसता ही जाता हूँ फ़ासलों की खोहों तहों में। |
− | सहसा रो उठा कन्धे पर वह शिशु | + | सहसा रो उठा कन्धे पर वह शिशु |
− | अरे, अरे, वह स्वर अतिशय परिचित!! | + | अरे, अरे, वह स्वर अतिशय परिचित!! |
− | पहले भी कई बार कहीं तो भी सुना था, | + | पहले भी कई बार कहीं तो भी सुना था, |
− | उसमें तो स्फोटक क्षोभ का आयेगा, | + | उसमें तो स्फोटक क्षोभ का आयेगा, |
− | गहरी है शिकायत, | + | गहरी है शिकायत, |
− | क्रोध भयंकर। | + | क्रोध भयंकर। |
− | मुझे डर यदि कोई वह स्वर सुन ले | + | मुझे डर यदि कोई वह स्वर सुन ले |
− | हम दोनों फिर कहीं नहीं रह सकेंगे। | + | हम दोनों फिर कहीं नहीं रह सकेंगे। |
− | मैं पुचकारता हूँ, बहुत दुलारता, | + | मैं पुचकारता हूँ, बहुत दुलारता, |
− | समझाने के लिए तब गाता हूँ गाने, | + | समझाने के लिए तब गाता हूँ गाने, |
− | अधभूली लोरी ही होठों से फूटती! | + | अधभूली लोरी ही होठों से फूटती! |
− | मैं चुप करने की जितनी भी करता हूँ कोशिश, | + | मैं चुप करने की जितनी भी करता हूँ कोशिश, |
− | और-और चीख़ता है क्रोध से लगातार!! | + | और-और चीख़ता है क्रोध से लगातार!! |
− | गरम-गरम अश्रु टपकते हैं मुझपर। | + | गरम-गरम अश्रु टपकते हैं मुझपर। |
− | किन्तु, न जाने क्यों ख़ुश बहुत हूँ। | + | किन्तु, न जाने क्यों ख़ुश बहुत हूँ। |
− | जिसको न मैं जीवन में कर पाया, | + | जिसको न मैं जीवन में कर पाया, |
− | वह कर रहा है। | + | वह कर रहा है। |
− | मैं शिशु-पीठ थपथपा रहा हूँ, | + | मैं शिशु-पीठ थपथपा रहा हूँ, |
− | आत्मा है गीली। | + | आत्मा है गीली। |
− | पैर आगे बढ़ रहे, मन आगे जा रहा। | + | पैर आगे बढ़ रहे, मन आगे जा रहा। |
− | डूबता हूँ मैं किसी भीतरी सोच में-- | + | डूबता हूँ मैं किसी भीतरी सोच में-- |
− | हृदय के थाले में रक्त का तालाब, | + | हृदय के थाले में रक्त का तालाब, |
− | रक्त में डूबी हैं द्युतिमान् मणियाँ, | + | रक्त में डूबी हैं द्युतिमान् मणियाँ, |
− | रुधिर से फूट रहीं लाल-लाल किरणें, | + | रुधिर से फूट रहीं लाल-लाल किरणें, |
− | अनुभव-रक्त में डूबे हैं संकल्प, | + | अनुभव-रक्त में डूबे हैं संकल्प, |
− | और ये संकल्प | + | और ये संकल्प |
− | चलते हैं साथ-साथ। | + | चलते हैं साथ-साथ। |
− | अँधियारी गलियों में चला जा रहा हूँ। | + | अँधियारी गलियों में चला जा रहा हूँ। |
− | इतने में पाता हूँ अँधेरे में सहसा | + | इतने में पाता हूँ अँधेरे में सहसा |
− | कन्धे पर कुछ नहीं!! | + | कन्धे पर कुछ नहीं!! |
− | वह शिशु | + | वह शिशु |
− | चला गया जाने कहाँ, | + | चला गया जाने कहाँ, |
− | और अब उसके ही स्थान पर | + | और अब उसके ही स्थान पर |
− | मात्र हैं सूरज-मुखी-फूल-गुच्छे। | + | मात्र हैं सूरज-मुखी-फूल-गुच्छे। |
− | उन स्वर्ण-पुष्पों से प्रकाश-विकीरण | + | उन स्वर्ण-पुष्पों से प्रकाश-विकीरण |
− | कन्धों पर, सिर पर, गालों पर, तन पर, | + | कन्धों पर, सिर पर, गालों पर, तन पर, |
− | रास्ते पर, फैले हैं किरणों के कण-कण। | + | रास्ते पर, फैले हैं किरणों के कण-कण। |
− | भई वाह, यह खूब!! | + | भई वाह, यह खूब!! |
− | इतने गली एक आ गयी और मैं | + | इतने गली एक आ गयी और मैं |
− | दरवाज़ा खुला हुआ देखता। | + | दरवाज़ा खुला हुआ देखता। |
− | ज़ीना है अँधेरा। | + | ज़ीना है अँधेरा। |
− | कहीं कोई ढिबरी-सी टिमटिमा रही है! | + | कहीं कोई ढिबरी-सी टिमटिमा रही है! |
− | मैं बढ़ रहा हूँ | + | मैं बढ़ रहा हूँ |
− | कन्धों पर फूलों के लम्बे वे गुच्छे | + | कन्धों पर फूलों के लम्बे वे गुच्छे |
− | क्या हुए, कहाँ गये? | + | क्या हुए, कहाँ गये? |
− | कन्धे क्यों वज़न से दुख रहे सहसा। | + | कन्धे क्यों वज़न से दुख रहे सहसा। |
− | ओ हो, | + | ओ हो, |
− | बन्दूक आ गयी | + | बन्दूक आ गयी |
− | वाह वा...!! | + | वाह वा...!! |
− | वज़नदार रॉयफ़ल | + | वज़नदार रॉयफ़ल |
− | भई खूब!! | + | भई खूब!! |
− | खुला हुआ कमरा है साँवली हवा है, | + | खुला हुआ कमरा है साँवली हवा है, |
− | झाँकते हैं खिड़कियों में से दूर अँधेरे में टँके हुए सितारे | + | झाँकते हैं खिड़कियों में से दूर अँधेरे में टँके हुए सितारे |
− | फैली है बर्फ़ीली साँस-सी वीरान, | + | फैली है बर्फ़ीली साँस-सी वीरान, |
− | तितर-बितर सब फैला है सामान। | + | तितर-बितर सब फैला है सामान। |
− | बीच में कोई ज़मीन पर पसरा, | + | बीच में कोई ज़मीन पर पसरा, |
− | फैलाये बाँहें, ढह पड़ा आख़िर। | + | फैलाये बाँहें, ढह पड़ा आख़िर। |
− | मैं उस जन पर फैलाता टार्च कि यह क्या-- | + | मैं उस जन पर फैलाता टार्च कि यह क्या-- |
− | ख़ून भरे बाल में उलझा है चेहरा, | + | ख़ून भरे बाल में उलझा है चेहरा, |
− | भौहों के बीच में गोली का सूराख़, | + | भौहों के बीच में गोली का सूराख़, |
− | ख़ून का परदा गालों पर फैला, | + | ख़ून का परदा गालों पर फैला, |
− | होठों पर सूखी है कत्थई धारा, | + | होठों पर सूखी है कत्थई धारा, |
− | फूटा है चश्मा नाक है सीधी, | + | फूटा है चश्मा नाक है सीधी, |
− | ओफ्फो!! एकान्त-प्रिय यह मेरा | + | ओफ्फो!! एकान्त-प्रिय यह मेरा |
− | परिचित व्यक्ति है, वहीं, हाँ, | + | परिचित व्यक्ति है, वहीं, हाँ, |
− | सचाई थी सिर्फ़ एक अहसास | + | सचाई थी सिर्फ़ एक अहसास |
− | वह कलाकार था | + | वह कलाकार था |
− | गलियों के अँधेरे का, हृदय में, भार था | + | गलियों के अँधेरे का, हृदय में, भार था |
− | पर, कार्य क्षमता से वंचित व्यक्ति, | + | पर, कार्य क्षमता से वंचित व्यक्ति, |
− | चलाता था अपना असंग अस्तित्व। | + | चलाता था अपना असंग अस्तित्व। |
− | सुकुमार मानवीय हृदयों के अपने | + | सुकुमार मानवीय हृदयों के अपने |
− | शुचितर विश्व के मात्र थे सपने। | + | शुचितर विश्व के मात्र थे सपने। |
− | स्वप्न व ज्ञान व जीवनानुभव जो-- | + | स्वप्न व ज्ञान व जीवनानुभव जो-- |
− | हलचल करता था रह-रह दिल में | + | हलचल करता था रह-रह दिल में |
− | किसी को भी दे नहीं पाया था वह तो। | + | किसी को भी दे नहीं पाया था वह तो। |
− | शून्य के जल में डूब गया नीरव | + | शून्य के जल में डूब गया नीरव |
− | हो नहीं पाया उपयोग उसका। | + | हो नहीं पाया उपयोग उसका। |
− | किन्तु अचानक झोंक में आकर क्या कर गुज़रा कि | + | किन्तु अचानक झोंक में आकर क्या कर गुज़रा कि |
− | सन्देहास्पद समझा गया और | + | सन्देहास्पद समझा गया और |
− | मारा गया वह बधिकों के हाथों। | + | मारा गया वह बधिकों के हाथों। |
− | मुक्ति का इच्छुक तृषार्त अन्तर | + | मुक्ति का इच्छुक तृषार्त अन्तर |
− | मुक्ति के यत्नों के साथ निरन्तर | + | मुक्ति के यत्नों के साथ निरन्तर |
− | सबका था प्यारा। | + | सबका था प्यारा। |
− | अपने में द्युतिमान। | + | अपने में द्युतिमान। |
− | उनका यों वध हुआ, | + | उनका यों वध हुआ, |
− | मर गया एक युग, | + | मर गया एक युग, |
− | मर गया एक जीवनादर्श!! | + | मर गया एक जीवनादर्श!! |
− | इतने में मुझको ही चिढ़ाता है कोई। | + | इतने में मुझको ही चिढ़ाता है कोई। |
− | सवाल है-- मैं क्या करता था अब तक, | + | सवाल है-- मैं क्या करता था अब तक, |
− | भागता फिरता था सब ओर। | + | भागता फिरता था सब ओर। |
− | (फ़िजूल है इस वक़्त कोसना ख़ुद को) | + | (फ़िजूल है इस वक़्त कोसना ख़ुद को) |
− | एकदम ज़रूरी-दोस्तों को खोजूँ | + | एकदम ज़रूरी-दोस्तों को खोजूँ |
− | पाऊँ मैं नये-नये सहचर | + | पाऊँ मैं नये-नये सहचर |
− | सकर्मक सत्-चित्-वेदना-भास्कर!! | + | सकर्मक सत्-चित्-वेदना-भास्कर!! |
− | ज़ीने से उतरा | + | ज़ीने से उतरा |
− | एकाएक विद्रूप रूपों से घिर गया सहसा | + | एकाएक विद्रूप रूपों से घिर गया सहसा |
− | पकड़ मशीन-सी, | + | पकड़ मशीन-सी, |
− | भयानक आकार घेरते हैं मुझको, | + | भयानक आकार घेरते हैं मुझको, |
− | मैं आततायी-सत्ता के सम्मुख। | + | मैं आततायी-सत्ता के सम्मुख। |
− | एकाएक हृदय धड़ककर रुक गया, क्या हुआ!! | + | एकाएक हृदय धड़ककर रुक गया, क्या हुआ!! |
− | भयानक सनसनी। | + | भयानक सनसनी। |
− | पकड़कर कॉलर गला दबाया गया। | + | पकड़कर कॉलर गला दबाया गया। |
− | चाँटे से कनपटी टूटी कि अचानक | + | चाँटे से कनपटी टूटी कि अचानक |
− | त्वचा उखड़ गयी गाल की पूरी। | + | त्वचा उखड़ गयी गाल की पूरी। |
− | कान में भर गयी | + | कान में भर गयी |
− | भयानक अनहद-नाद की भनभन। | + | भयानक अनहद-नाद की भनभन। |
− | आँखों में तैरीं रक्तिम तितलियाँ, चिनगियाँ नीली। | + | आँखों में तैरीं रक्तिम तितलियाँ, चिनगियाँ नीली। |
− | सामने ऊगते-डूबते धूँधले | + | सामने ऊगते-डूबते धूँधले |
− | कुहरिल वर्तुल, | + | कुहरिल वर्तुल, |
− | जिनका कि चक्रिल केन्द्र ही फैलता जाता | + | जिनका कि चक्रिल केन्द्र ही फैलता जाता |
− | उस फैलाव में दीखते मुझको | + | उस फैलाव में दीखते मुझको |
− | धँस रहे, गिर रहे बड़े-बड़े टॉवर | + | धँस रहे, गिर रहे बड़े-बड़े टॉवर |
− | घुँघराला धूआँ, गेरूआ ज्वाला। | + | घुँघराला धूआँ, गेरूआ ज्वाला। |
− | हृदय में भगदड़-- | + | हृदय में भगदड़-- |
− | सम्मुख दीखा | + | सम्मुख दीखा |
− | उजाड़ बंजर टीले पर सहसा | + | उजाड़ बंजर टीले पर सहसा |
− | रो उठा कोई, रो रहा कोई | + | रो उठा कोई, रो रहा कोई |
− | भागता कोई सहायता देने। | + | भागता कोई सहायता देने। |
− | अन्तर्तत्त्वों का पुनर्प्रबंध और पुनर्व्यवस्था | + | अन्तर्तत्त्वों का पुनर्प्रबंध और पुनर्व्यवस्था |
− | पुनर्गठन-सा होता जा रहा। | + | पुनर्गठन-सा होता जा रहा। |
− | दृश्य ही बदला, चित्र बदल गया | + | दृश्य ही बदला, चित्र बदल गया |
− | जबरन ले जाया गया मैं गहरे | + | जबरन ले जाया गया मैं गहरे |
− | अँधियारे कमरे के स्याह सिफ़र में। | + | अँधियारे कमरे के स्याह सिफ़र में। |
− | टूटे-से स्टूल में बिठाया गया हूँ। | + | टूटे-से स्टूल में बिठाया गया हूँ। |
− | शीश की हड्डी जा रही तोड़ी। | + | शीश की हड्डी जा रही तोड़ी। |
− | लोहे की कील पर बड़े हथौड़े | + | लोहे की कील पर बड़े हथौड़े |
− | पड़ रहे लगातार। | + | पड़ रहे लगातार। |
− | शीश का मोटा अस्थि-कवच ही निकाल डाला। | + | शीश का मोटा अस्थि-कवच ही निकाल डाला। |
− | देखा जा रहा-- | + | देखा जा रहा-- |
− | मस्तक-यन्त्र में कौन विचारों की कौन-सी ऊर्जा, | + | मस्तक-यन्त्र में कौन विचारों की कौन-सी ऊर्जा, |
− | कौन-सी शिरा में कौन-सी धक्-धक्, | + | कौन-सी शिरा में कौन-सी धक्-धक्, |
− | कौन-सी रग में कौन-सी फुरफुरी, | + | कौन-सी रग में कौन-सी फुरफुरी, |
− | कहाँ है पश्यत् कैमरा जिसमें | + | कहाँ है पश्यत् कैमरा जिसमें |
− | तथ्यों के जीवन-दृश्य उतरते, | + | तथ्यों के जीवन-दृश्य उतरते, |
− | कहाँ-कहाँ सच्चे सपनों के आशय | + | कहाँ-कहाँ सच्चे सपनों के आशय |
− | कहाँ-कहाँ क्षोभक-स्फोटक सामान! | + | कहाँ-कहाँ क्षोभक-स्फोटक सामान! |
− | भीतर कहीं पर गड़े हुए गहरे | + | भीतर कहीं पर गड़े हुए गहरे |
− | तलघर अन्दर | + | तलघर अन्दर |
− | छिपे हुए प्रिण्टिंग प्रेस को खोजो। | + | छिपे हुए प्रिण्टिंग प्रेस को खोजो। |
− | जहाँ कि चुपचाप ख़यालों के परचे | + | जहाँ कि चुपचाप ख़यालों के परचे |
− | छपते रहते हैं, बाँटे जाते। | + | छपते रहते हैं, बाँटे जाते। |
− | इस संस्था के सेक्रेट्री को खोज निकालो, | + | इस संस्था के सेक्रेट्री को खोज निकालो, |
− | शायद, उसका ही नाम हो आस्था, | + | शायद, उसका ही नाम हो आस्था, |
− | कहाँ है सरगना इस टुकड़ी का | + | कहाँ है सरगना इस टुकड़ी का |
− | कहाँ है आत्मा? | + | कहाँ है आत्मा? |
− | (और, मैं सुनता हूँ चिढ़ी हुई ऊँची | + | (और, मैं सुनता हूँ चिढ़ी हुई ऊँची |
− | खिझलायी आवाज) | + | खिझलायी आवाज) |
− | स्क्रीनिंग करो मिस्टर गुप्ता, | + | स्क्रीनिंग करो मिस्टर गुप्ता, |
− | क्रॉस एक्जामिन हिम थॉरोली!! | + | क्रॉस एक्जामिन हिम थॉरोली!! |
− | चाबुक-चमकार | + | चाबुक-चमकार |
− | पीठ पर यद्यपि | + | पीठ पर यद्यपि |
− | उखड़े चर्म की कत्थई-रक्तिम रेखाएँ उभरीं | + | उखड़े चर्म की कत्थई-रक्तिम रेखाएँ उभरीं |
− | पर, यह आत्मा कुशल बहुत है, | + | पर, यह आत्मा कुशल बहुत है, |
− | देह में रेंग रही संवेदना की गरमीली कड़ुई धारा गहरी | + | देह में रेंग रही संवेदना की गरमीली कड़ुई धारा गहरी |
− | झनझन थरथर तारों को उसके, | + | झनझन थरथर तारों को उसके, |
− | समेटकर वह सब | + | समेटकर वह सब |
− | वेदना-विस्तार करके इकट्ठा | + | वेदना-विस्तार करके इकट्ठा |
− | मेरा मन यह | + | मेरा मन यह |
− | जबरन उसकी छोटी-सी कड्ढी | + | जबरन उसकी छोटी-सी कड्ढी |
− | गठान बाँधता सख़्त व मज़बूत | + | गठान बाँधता सख़्त व मज़बूत |
− | मानो कि पत्थर। | + | मानो कि पत्थर। |
− | ज़ोर लगाकर, | + | ज़ोर लगाकर, |
− | उसी गठान को हथेलियों से | + | उसी गठान को हथेलियों से |
− | करता है चूर-चूर, | + | करता है चूर-चूर, |
− | धूल में बिखरा देता है उसको। | + | धूल में बिखरा देता है उसको। |
− | मन यह हटता है देह की हद से | + | मन यह हटता है देह की हद से |
− | जाता है कहीं पर अलग जगत् में। | + | जाता है कहीं पर अलग जगत् में। |
− | विचित्र क्षण है, | + | विचित्र क्षण है, |
− | सिर्फ़ है जादू, | + | सिर्फ़ है जादू, |
− | मात्र मैं बिजली | + | मात्र मैं बिजली |
− | यद्यपि खोह में खूँटे बँधा हूँ | + | यद्यपि खोह में खूँटे बँधा हूँ |
− | दैत्य है आस-पास | + | दैत्य है आस-पास |
− | फिर भी बहुत दूर मीलों के पार वहाँ | + | फिर भी बहुत दूर मीलों के पार वहाँ |
− | गिरता हूँ चुपचाप पत्र के रूप में | + | गिरता हूँ चुपचाप पत्र के रूप में |
− | किसी एक जेब में | + | किसी एक जेब में |
− | वह जेब... | + | वह जेब... |
− | किसी एक फटे हुए मन की। | + | किसी एक फटे हुए मन की। |
− | समस्वर, समताल, | + | समस्वर, समताल, |
− | सहानुभूति की सनसनी कोमल!! | + | सहानुभूति की सनसनी कोमल!! |
− | हम कहाँ नहीं हैं | + | हम कहाँ नहीं हैं |
− | सभी जगह हम। | + | सभी जगह हम। |
− | निजता हमारी? | + | निजता हमारी? |
− | भीतर-भीतर बिजली के जीवित | + | भीतर-भीतर बिजली के जीवित |
− | तारों के जाले, | + | तारों के जाले, |
− | ज्वलन्त तारों की भीषण गुत्थी, | + | ज्वलन्त तारों की भीषण गुत्थी, |
− | बाहर-बाहर धूल-सी भूरी | + | बाहर-बाहर धूल-सी भूरी |
− | ज़मीन की पपड़ी | + | ज़मीन की पपड़ी |
− | अग्नि को लेकर, मस्तक हिमवत्, | + | अग्नि को लेकर, मस्तक हिमवत्, |
− | उग्र प्रभंजन लेकर, उर यह | + | उग्र प्रभंजन लेकर, उर यह |
− | बिलकुल निश्चल। | + | बिलकुल निश्चल। |
− | भीषण शक्ति को धारण करके | + | भीषण शक्ति को धारण करके |
− | आत्मा का पोशाक दीन व मैला। | + | आत्मा का पोशाक दीन व मैला। |
− | विचित्र रूपों को धारण करके | + | विचित्र रूपों को धारण करके |
− | चलता है जीवन, लक्ष्यों के पथ पर।< | + | चलता है जीवन, लक्ष्यों के पथ पर। |
+ | </poem> |
12:54, 26 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
सीन बदलता है
सुनसान चौराहा साँवला फैला,
बीच में वीरान गेरूआ घण्टाघर,
ऊपर कत्थई बुज़र्ग गुम्बद,
साँवली हवाओं में काल टहलता है।
रात में पीले हैं चार घड़ी-चेहरे,
मिनिट के काँटों की चार अलग गतियाँ,
चार अलग कोण,
कि चार अलग संकेत
(मनस् में गतिमान् चार अलग मतियाँ)
खम्भों पर बिजली की गरदनें लटकीं,
शर्म से जलते हुए बल्बों के आस-पास
बेचैन ख़यालों के पंखों के कीड़े
उड़ते हैं गोल-गोल
मचल-मचलकर।
घण्टाघर तले ही
पंखों के टुकड़े व तिनके।
गुम्बद-विवर में बैठे हुए बूढ़े
असम्भव पक्षी
बहुत तेज़ नज़रों से देखते हैं सब ओर,
मानो कि इरादे
भयानक चमकते।
सुनसान चौराहा
बिखरी हैं गतियाँ, बिखरी है रफ़्तार,
गश्त में घूमती है कोई दुष्ट इच्छा।
भयानक सिपाही जाने किस थकी हुई झोंक में
अँधेरे में सुलगाता सिगरेट अचानक
ताँबे से चेहरे की ऐंठ झलकती।
पथरीली सलवट
दियासलाई की पल-भर लौ में
साँप-सी लगती।
पर उसके चेहरे का रंग बदलता है हर बार,
मानो अनपेक्षित कहीं न कुछ हो...
वह ताक रहा है--
संगीन नोंकों पर टिका हुआ
साँवला बन्दूक़-जत्था
गोल त्रिकोण एक बनाये खड़ा जो
चौक के बीच में!!
एक ओर
टैंकों का दस्ता भी खड़े-खड़े ऊँघता,
परन्तु अड़ा है!!
भागता मैं दम छोड़,
घूम गया कई मोड़
भागती है चप्पल, चटपट आवाज़
चाँटों-सी पड़ती।
पैरों के नीचे का कींच उछलकर
चेहरे पर छाती पर, पड़ता है सहसा,
ग्लानि की मितली।
गलियों का गोल-गोल खोह अँधेरा
चेहरे पर आँखों पर करता है हमला।
अजीब उमस-बास
गलियों का रुँधा हुआ उच्छवास
भागता हूँ दम छोड़,
घूम गया कई मोड़।
धुँधले-से आकार कहीं-कहीं दीखते,
भय के? या घर के? कह नहीं सकता
आता है अकस्मात् कोलतार-रास्ता
लम्बा व चौड़ा व स्याह व ठंडा,
बेचैन आँखें ये देखती हैं सब ओर।
कहीं कोई नहीं है,
नहीं कहीं कोई भी।
श्याम आकाश में, संकेत-भाषा-सी तारों की आँखें
चमचमा रही हैं।
मेरा दिल ढिबरी-सा टिमटिमा रहा है।
कोई मुझे खींचता है रास्ते के बीच ही।
जादू से बँधा हुआ चल पड़ा उस ओर।
सपाट सूने में ऊँची-सी खड़ी जो
तिलक की पाषाण-मूर्ति है निःसंग
स्तब्ध जड़ीभूत...
देखता हूँ उसको परन्तु, ज्यों ही मैं पास पहुँचता
पाषाण-पीठिका हिलती-सी लगती
अरे, अरे यह क्या!!
कण-कण काँप रहे जिनमें-से झरते
नीले इलेक्ट्रान
सब ओर गिर रही हैं चिनगियाँ नीली
मूर्ति के तन से झरते हैं अंगार।
मुस्कान पत्थरी होठों पर काँपी,
आँखों में बिजली के फूल सुलगते।
इतने में यह क्या!!
भव्य ललाट की नासिका में से
बह रहा ख़ून न जाने कब से
लाल-लाल गरमीला रक्त टपकता
(ख़ून के धब्बों से भरा अँगरखा)
मानो कि अतिशय चिन्ता के कारण
मस्तक-कोष ही फूट पड़े सहसा
मस्तक-रक्त ही बह उठा नासिका में से।
हाय, हाय, पितः पितः ओ,
चिन्ता में इतने न उलझो
हम अभी ज़िन्दा हैं ज़िन्दा,
चिन्ता क्या है!!
मैं उस पाषाण-मूर्ति के ठण्डे
पैरों की छाती से बरबस चिपका
रुआँसा-सा होता
देह में तन गये करुणा के काँटे
छाती पर, सिर पर, बाँहों पर मेरे
गिरती हैं नीली
बिजली की चिनगियाँ
रक्त टपकता है हृदय में मेरे
आत्मा में बहता-सा लगता
ख़ून का तालाब।
इतने में छाती के भीतर ठक्-ठक्
सिर में है धड़-धड़ !! कट रही हड्डी!!
फ़िक्र जबरदस्त!!
विवेक चलाता तीखा-सा रन्दा
चल रहा बासूला
छीले जा रहा मेरा निजत्व ही कोई
भयानक ज़िद कोई जाग उठी मेरे भी अन्दर
हठ कोई बड़ा भारी उठ खड़ा हुआ है।
इतने में आसमान काँपा व धाँय-धाँय
बन्दूक़ धड़ाका
बिजली की रफ़्तार पैरों में घूम गयी।
खोहों-सी गलियों के अँधेरे में एक ओर
मैं थक बैठ गया,
सोचने-विचारने।
अँधेरे में डूबे मकानों के छप्परों के पार से
रोने की पतली-सी आवाज़
सूने में काँप रही काँप रही दूर तक
कराहों की लहरों में पाशव प्राकृत
वेदना भयानक थरथरा रही है।
मैं उसे सुनने का करता हूँ यत्न
कि देखता क्या हूँ-
सामने मेरे
सर्दी में बोरे को ओढ़कर
कोई एक अपने
हाथ-पैर समेटे
काँप रहा, हिल रहा---वह मर जायगा।
इतने में वह सिर खोलता है सहसा
बाल बिखरते
दीखते हैं कान कि
फिर मुँह खोलता है, वह कुछ
बुदबुदा रहा है,
किन्तु मैं सुनता ही नहीं हूँ।
ध्यान से देखता हूँ--वह कोई परिचित
जिसे खूब देखा था, निरखा था कई बार
पर पाया नहीं था।
अरे हाँ, वह तो...
विचार उठते ही दब गये,
सोचने का साहस सब चला गया है।
वह मुख--अरे, वह मुख, वे गाँधी जी!!
इस तरह पंगु!!
आश्चर्य!!
नहीं, नहीं वे जाँच-पड़ताल
रूप बदलकर करते हैं चुपचाप।
सुराग़रसी-सी कुछ।
अँधेरे की स्याही में डूबे हुए देव को सम्मुख पाकर
मैं अति दीन हो जाता हूँ पास कि
बिजली का झटका
कहता है-"भाग जा, हट जा
हम हैं गुज़र गये ज़माने के चेहरे
आगे तू बढ़ जा।"
किन्तु मैं देखा किया उस मुख को।
गम्भीर दृढ़ता की सलवटें वैसी ही,
शब्दों में गुरुता।
वे कह रहे हैं--
"दुनिया न कचरे का ढेर कि जिस पर
दानों को चुगने चढ़ा हुआ कोई भी कुक्कुट
कोई भी मुरग़ा
यदि बाँग दे उठे जोरदार
बन जाये मसीहा"
वे कह रहे हैं--
मिट्टी के लोंदे में किरगीले कण-कण
गुण हैं,
जनता के गुणों से ही सम्भव
भावी का उद्भव ...
गम्भीर शब्द वे और आगे बढ़ गये,
जाने क्या कह गये!!
मैं अति उद्विग्न!
एकाएक उठ पड़ा आत्मा का पिंजर
मूर्ति की ठठरी।
नाक पर चश्मा, हाथ में डण्डा,
कन्धे पर बोरा, बाँह में बच्चा।
आश्चर्य!! अद्भुत! यह शिशु कैसे!!
मुसकरा उस द्युति-पुरुष ने कहा तब--
"मेरे पास चुपचाप सोया हुआ यह था।
सँभालना इसको, सुरक्षित रखना"
मैं कुछ कहने को होता हूँ इतने में वहाँ पर
कहीं कोई नहीं है, कहीं कोई नहीं है:
और ज़्यादा गहरा व और ज़्यादा अकेला
अँधेरे का फैलाव!
बालक लिपटा है मेरे इस गले से चुपचाप,
छाती से कन्धे से चिपका है नन्हा-सा आकाश
स्पर्श है सुकुमार प्यार-भरा कोमल
किन्तु है भार का गम्भीर अनुभव
भावी की गन्ध और दूरियाँ अँधेरी
आकाशी तारों को साथ लिये हुए मैं
चला जा रहा हूँ
घुसता ही जाता हूँ फ़ासलों की खोहों तहों में।
सहसा रो उठा कन्धे पर वह शिशु
अरे, अरे, वह स्वर अतिशय परिचित!!
पहले भी कई बार कहीं तो भी सुना था,
उसमें तो स्फोटक क्षोभ का आयेगा,
गहरी है शिकायत,
क्रोध भयंकर।
मुझे डर यदि कोई वह स्वर सुन ले
हम दोनों फिर कहीं नहीं रह सकेंगे।
मैं पुचकारता हूँ, बहुत दुलारता,
समझाने के लिए तब गाता हूँ गाने,
अधभूली लोरी ही होठों से फूटती!
मैं चुप करने की जितनी भी करता हूँ कोशिश,
और-और चीख़ता है क्रोध से लगातार!!
गरम-गरम अश्रु टपकते हैं मुझपर।
किन्तु, न जाने क्यों ख़ुश बहुत हूँ।
जिसको न मैं जीवन में कर पाया,
वह कर रहा है।
मैं शिशु-पीठ थपथपा रहा हूँ,
आत्मा है गीली।
पैर आगे बढ़ रहे, मन आगे जा रहा।
डूबता हूँ मैं किसी भीतरी सोच में--
हृदय के थाले में रक्त का तालाब,
रक्त में डूबी हैं द्युतिमान् मणियाँ,
रुधिर से फूट रहीं लाल-लाल किरणें,
अनुभव-रक्त में डूबे हैं संकल्प,
और ये संकल्प
चलते हैं साथ-साथ।
अँधियारी गलियों में चला जा रहा हूँ।
इतने में पाता हूँ अँधेरे में सहसा
कन्धे पर कुछ नहीं!!
वह शिशु
चला गया जाने कहाँ,
और अब उसके ही स्थान पर
मात्र हैं सूरज-मुखी-फूल-गुच्छे।
उन स्वर्ण-पुष्पों से प्रकाश-विकीरण
कन्धों पर, सिर पर, गालों पर, तन पर,
रास्ते पर, फैले हैं किरणों के कण-कण।
भई वाह, यह खूब!!
इतने गली एक आ गयी और मैं
दरवाज़ा खुला हुआ देखता।
ज़ीना है अँधेरा।
कहीं कोई ढिबरी-सी टिमटिमा रही है!
मैं बढ़ रहा हूँ
कन्धों पर फूलों के लम्बे वे गुच्छे
क्या हुए, कहाँ गये?
कन्धे क्यों वज़न से दुख रहे सहसा।
ओ हो,
बन्दूक आ गयी
वाह वा...!!
वज़नदार रॉयफ़ल
भई खूब!!
खुला हुआ कमरा है साँवली हवा है,
झाँकते हैं खिड़कियों में से दूर अँधेरे में टँके हुए सितारे
फैली है बर्फ़ीली साँस-सी वीरान,
तितर-बितर सब फैला है सामान।
बीच में कोई ज़मीन पर पसरा,
फैलाये बाँहें, ढह पड़ा आख़िर।
मैं उस जन पर फैलाता टार्च कि यह क्या--
ख़ून भरे बाल में उलझा है चेहरा,
भौहों के बीच में गोली का सूराख़,
ख़ून का परदा गालों पर फैला,
होठों पर सूखी है कत्थई धारा,
फूटा है चश्मा नाक है सीधी,
ओफ्फो!! एकान्त-प्रिय यह मेरा
परिचित व्यक्ति है, वहीं, हाँ,
सचाई थी सिर्फ़ एक अहसास
वह कलाकार था
गलियों के अँधेरे का, हृदय में, भार था
पर, कार्य क्षमता से वंचित व्यक्ति,
चलाता था अपना असंग अस्तित्व।
सुकुमार मानवीय हृदयों के अपने
शुचितर विश्व के मात्र थे सपने।
स्वप्न व ज्ञान व जीवनानुभव जो--
हलचल करता था रह-रह दिल में
किसी को भी दे नहीं पाया था वह तो।
शून्य के जल में डूब गया नीरव
हो नहीं पाया उपयोग उसका।
किन्तु अचानक झोंक में आकर क्या कर गुज़रा कि
सन्देहास्पद समझा गया और
मारा गया वह बधिकों के हाथों।
मुक्ति का इच्छुक तृषार्त अन्तर
मुक्ति के यत्नों के साथ निरन्तर
सबका था प्यारा।
अपने में द्युतिमान।
उनका यों वध हुआ,
मर गया एक युग,
मर गया एक जीवनादर्श!!
इतने में मुझको ही चिढ़ाता है कोई।
सवाल है-- मैं क्या करता था अब तक,
भागता फिरता था सब ओर।
(फ़िजूल है इस वक़्त कोसना ख़ुद को)
एकदम ज़रूरी-दोस्तों को खोजूँ
पाऊँ मैं नये-नये सहचर
सकर्मक सत्-चित्-वेदना-भास्कर!!
ज़ीने से उतरा
एकाएक विद्रूप रूपों से घिर गया सहसा
पकड़ मशीन-सी,
भयानक आकार घेरते हैं मुझको,
मैं आततायी-सत्ता के सम्मुख।
एकाएक हृदय धड़ककर रुक गया, क्या हुआ!!
भयानक सनसनी।
पकड़कर कॉलर गला दबाया गया।
चाँटे से कनपटी टूटी कि अचानक
त्वचा उखड़ गयी गाल की पूरी।
कान में भर गयी
भयानक अनहद-नाद की भनभन।
आँखों में तैरीं रक्तिम तितलियाँ, चिनगियाँ नीली।
सामने ऊगते-डूबते धूँधले
कुहरिल वर्तुल,
जिनका कि चक्रिल केन्द्र ही फैलता जाता
उस फैलाव में दीखते मुझको
धँस रहे, गिर रहे बड़े-बड़े टॉवर
घुँघराला धूआँ, गेरूआ ज्वाला।
हृदय में भगदड़--
सम्मुख दीखा
उजाड़ बंजर टीले पर सहसा
रो उठा कोई, रो रहा कोई
भागता कोई सहायता देने।
अन्तर्तत्त्वों का पुनर्प्रबंध और पुनर्व्यवस्था
पुनर्गठन-सा होता जा रहा।
दृश्य ही बदला, चित्र बदल गया
जबरन ले जाया गया मैं गहरे
अँधियारे कमरे के स्याह सिफ़र में।
टूटे-से स्टूल में बिठाया गया हूँ।
शीश की हड्डी जा रही तोड़ी।
लोहे की कील पर बड़े हथौड़े
पड़ रहे लगातार।
शीश का मोटा अस्थि-कवच ही निकाल डाला।
देखा जा रहा--
मस्तक-यन्त्र में कौन विचारों की कौन-सी ऊर्जा,
कौन-सी शिरा में कौन-सी धक्-धक्,
कौन-सी रग में कौन-सी फुरफुरी,
कहाँ है पश्यत् कैमरा जिसमें
तथ्यों के जीवन-दृश्य उतरते,
कहाँ-कहाँ सच्चे सपनों के आशय
कहाँ-कहाँ क्षोभक-स्फोटक सामान!
भीतर कहीं पर गड़े हुए गहरे
तलघर अन्दर
छिपे हुए प्रिण्टिंग प्रेस को खोजो।
जहाँ कि चुपचाप ख़यालों के परचे
छपते रहते हैं, बाँटे जाते।
इस संस्था के सेक्रेट्री को खोज निकालो,
शायद, उसका ही नाम हो आस्था,
कहाँ है सरगना इस टुकड़ी का
कहाँ है आत्मा?
(और, मैं सुनता हूँ चिढ़ी हुई ऊँची
खिझलायी आवाज)
स्क्रीनिंग करो मिस्टर गुप्ता,
क्रॉस एक्जामिन हिम थॉरोली!!
चाबुक-चमकार
पीठ पर यद्यपि
उखड़े चर्म की कत्थई-रक्तिम रेखाएँ उभरीं
पर, यह आत्मा कुशल बहुत है,
देह में रेंग रही संवेदना की गरमीली कड़ुई धारा गहरी
झनझन थरथर तारों को उसके,
समेटकर वह सब
वेदना-विस्तार करके इकट्ठा
मेरा मन यह
जबरन उसकी छोटी-सी कड्ढी
गठान बाँधता सख़्त व मज़बूत
मानो कि पत्थर।
ज़ोर लगाकर,
उसी गठान को हथेलियों से
करता है चूर-चूर,
धूल में बिखरा देता है उसको।
मन यह हटता है देह की हद से
जाता है कहीं पर अलग जगत् में।
विचित्र क्षण है,
सिर्फ़ है जादू,
मात्र मैं बिजली
यद्यपि खोह में खूँटे बँधा हूँ
दैत्य है आस-पास
फिर भी बहुत दूर मीलों के पार वहाँ
गिरता हूँ चुपचाप पत्र के रूप में
किसी एक जेब में
वह जेब...
किसी एक फटे हुए मन की।
समस्वर, समताल,
सहानुभूति की सनसनी कोमल!!
हम कहाँ नहीं हैं
सभी जगह हम।
निजता हमारी?
भीतर-भीतर बिजली के जीवित
तारों के जाले,
ज्वलन्त तारों की भीषण गुत्थी,
बाहर-बाहर धूल-सी भूरी
ज़मीन की पपड़ी
अग्नि को लेकर, मस्तक हिमवत्,
उग्र प्रभंजन लेकर, उर यह
बिलकुल निश्चल।
भीषण शक्ति को धारण करके
आत्मा का पोशाक दीन व मैला।
विचित्र रूपों को धारण करके
चलता है जीवन, लक्ष्यों के पथ पर।