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"भटकते सपने / सविता सिंह" के अवतरणों में अंतर

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17:21, 6 नवम्बर 2007 के समय का अवतरण

खोते गए हैं मेरे साथ जन्मे वे सारे सपने

जो मेरे साथी थे

जिनको बचाए रखा नींद में मैंने

जैसे बचाती है नींद सपनों को अक्सर


अब मेरी याद में आँखों की खोती रोशनी की तरह

उनके खोने की उदासी बचती है

ख़ाली सड़क पर ग़ुम होती किसी प्रिय की पदचाप जैसे


मुझे नहीं मालूम वे कब खोए और कैसे

बस यह जानती हूँ वे हैं अब भी कहीं

किसी और की नींद में भटकते

याद करते पिछले अभिसारों को