"चकल्लस (कविता) / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatAwadhiRachna}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=पढ़ीस |
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatAwadhiRachna}} | {{KKCatAwadhiRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | अगहनी | + | अगहनी पुन्नमासी क्यार म्याला देखि छकि आयउँ; |
− | + | पयिसवा तीनि आना तूरि का परसाद घर आयऊँ। | |
− | + | दुयि घरी दउस<ref>दिवस, दिन</ref> के चढ़तयि रहकला<ref>छोटे आकार की साधारण बैलगाड़ी</ref>, | |
− | चलयि लागीं चह्वद्दी | + | बहला<ref>रथनुमा सजी हुई बैलगाड़ी</ref> अउ अदधा<ref>लढ़ी बड़े आकार की बैलगाड़ी से आधे आकार की बैलगाड़ी</ref>; |
− | चला | + | चलयि लागीं चह्वद्दी ते कहाँ संभारू कयि पायउँ। |
− | कचरि छा सात गे तिनमा, अधमरा | + | चला टींडी तना मनई, न ताँता टूट दुयि दिन तक; |
+ | कचरि छा सात गे तिनमा, अधमरा मयिं घरयि आयउँ। | ||
+ | सुर्ज बइठे मुजाका<ref>उस पर मजा यह, फारसी शब्द मुजायका, बहरहाल</ref> का कि द्वासर दिनु भवा म्याला; | ||
+ | गड़ी गैसै, बरयि बिजुली, चमाका देखि चउँध्यान्यउँ। | ||
+ | जहाँ द्याखउ तहाँ ददुआ, लाग ठेंठर<ref>थियेटर</ref> गड़े सरकस; | ||
+ | ठाढ़ तंबू कनातन मा चक्यउँ, चउँक्यउँ कि बउरान्यउँ। | ||
+ | जो देख्यउँ याक म्बहरे<ref>म्वहरा, दरवाजा, प्रवेश द्वार</ref> माँ बड़ी भीरयिं<ref>भीड़ें, आदमियों का समूह</ref> बड़े जम्मट<ref>जमघट, लोगो के समूह का इकट्ठा होना</ref>; | ||
+ | महूँ टोयउँ कि अलबट्टी पयिसवा सात हे पायउँ। | ||
+ | उठयिं रूपयन की छर्रयि अउर गुलछर्रयि करयि बाबू; | ||
+ | टिकस के चारि आना जानि मयिं जर-मूड़ ते सूख्यउँ। | ||
+ | चवन्नी की रहयि जवँधरी परी झ्वारा म पीठी पर; | ||
+ | मुलउ टिक्कसु उधारउ काढ़ि का काका न लयि पायउँ। | ||
+ | लिहिनि बढ़कायि दस बजतयि सबयि खिरकिन कि टटियन का; | ||
+ | ठनक तबला कि भयि भीतर टीप फिरि याक सुनि पायउँ। | ||
+ | जो बाढ़ी चुल्ल<ref>अदमय इच्छा</ref> खीसयि काढ़ि का बाबू ति मयिं बोल्यउँ; | ||
+ | ‘‘घुसउँ भीतर?’’ चप्वाटा कनपटा पर तानि का खायउँ। | ||
+ | यितनिहे पर न ख्वपड़ी का सनीचरू उतरिगा चच्चू; | ||
+ | सउँपि दीन्हिसि तिलंगन<ref>पुलिस के सिपाहीगण, द्वारपाला</ref> का चारि चवुका हुँअँउँ खायउँ। | ||
+ | रहयिं स्यावा समिरिती<ref>समिति, सामाजिक सेवा संस्था</ref> के बड़े मनई कि द्यउता उयि; | ||
+ | किहिनि पयिंयाँ-पलउटी तब छूटि थाने ति फिरि पायउँ। | ||
+ | चला आवति रहउँ हफ्फति तलयि तुम मिलि गयउ ककुआ; | ||
+ | रोवासा तउ रहउँ पहिले ति तुमका देखि डिंड़कार्यउँ<ref>चिल्लाकर रोना</ref>। | ||
+ | तनकु स्यहितायि ल्याहउँ, तब करउँ बरनकु चकल्लस का; | ||
+ | पुरबुले पाप कीन्ह्यउँ, तउन दामयि दाम भरि पायउँ। | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
15:20, 21 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
अगहनी पुन्नमासी क्यार म्याला देखि छकि आयउँ;
पयिसवा तीनि आना तूरि का परसाद घर आयऊँ।
दुयि घरी दउस<ref>दिवस, दिन</ref> के चढ़तयि रहकला<ref>छोटे आकार की साधारण बैलगाड़ी</ref>,
बहला<ref>रथनुमा सजी हुई बैलगाड़ी</ref> अउ अदधा<ref>लढ़ी बड़े आकार की बैलगाड़ी से आधे आकार की बैलगाड़ी</ref>;
चलयि लागीं चह्वद्दी ते कहाँ संभारू कयि पायउँ।
चला टींडी तना मनई, न ताँता टूट दुयि दिन तक;
कचरि छा सात गे तिनमा, अधमरा मयिं घरयि आयउँ।
सुर्ज बइठे मुजाका<ref>उस पर मजा यह, फारसी शब्द मुजायका, बहरहाल</ref> का कि द्वासर दिनु भवा म्याला;
गड़ी गैसै, बरयि बिजुली, चमाका देखि चउँध्यान्यउँ।
जहाँ द्याखउ तहाँ ददुआ, लाग ठेंठर<ref>थियेटर</ref> गड़े सरकस;
ठाढ़ तंबू कनातन मा चक्यउँ, चउँक्यउँ कि बउरान्यउँ।
जो देख्यउँ याक म्बहरे<ref>म्वहरा, दरवाजा, प्रवेश द्वार</ref> माँ बड़ी भीरयिं<ref>भीड़ें, आदमियों का समूह</ref> बड़े जम्मट<ref>जमघट, लोगो के समूह का इकट्ठा होना</ref>;
महूँ टोयउँ कि अलबट्टी पयिसवा सात हे पायउँ।
उठयिं रूपयन की छर्रयि अउर गुलछर्रयि करयि बाबू;
टिकस के चारि आना जानि मयिं जर-मूड़ ते सूख्यउँ।
चवन्नी की रहयि जवँधरी परी झ्वारा म पीठी पर;
मुलउ टिक्कसु उधारउ काढ़ि का काका न लयि पायउँ।
लिहिनि बढ़कायि दस बजतयि सबयि खिरकिन कि टटियन का;
ठनक तबला कि भयि भीतर टीप फिरि याक सुनि पायउँ।
जो बाढ़ी चुल्ल<ref>अदमय इच्छा</ref> खीसयि काढ़ि का बाबू ति मयिं बोल्यउँ;
‘‘घुसउँ भीतर?’’ चप्वाटा कनपटा पर तानि का खायउँ।
यितनिहे पर न ख्वपड़ी का सनीचरू उतरिगा चच्चू;
सउँपि दीन्हिसि तिलंगन<ref>पुलिस के सिपाहीगण, द्वारपाला</ref> का चारि चवुका हुँअँउँ खायउँ।
रहयिं स्यावा समिरिती<ref>समिति, सामाजिक सेवा संस्था</ref> के बड़े मनई कि द्यउता उयि;
किहिनि पयिंयाँ-पलउटी तब छूटि थाने ति फिरि पायउँ।
चला आवति रहउँ हफ्फति तलयि तुम मिलि गयउ ककुआ;
रोवासा तउ रहउँ पहिले ति तुमका देखि डिंड़कार्यउँ<ref>चिल्लाकर रोना</ref>।
तनकु स्यहितायि ल्याहउँ, तब करउँ बरनकु चकल्लस का;
पुरबुले पाप कीन्ह्यउँ, तउन दामयि दाम भरि पायउँ।