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"मैं ज़िन्दगी में कभी इस क़दर न भटका था / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर

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मैं ज़िन्दगी में कभी इस क़दर न भटका था
 
मैं ज़िन्दगी में कभी इस क़दर न भटका था
 
 
कि जब ज़मीर मुझे रास्ता दिखाता था  
 
कि जब ज़मीर मुझे रास्ता दिखाता था  
 
  
 
मशीन बन तो चुका हूँ मगर नहीं भूला
 
मशीन बन तो चुका हूँ मगर नहीं भूला
 
 
कि मेरे जिस्म में दिल भी कभी धड़कता था  
 
कि मेरे जिस्म में दिल भी कभी धड़कता था  
 
  
 
वो बच्चा खो गया दुनिया की भीड़ में कब का
 
वो बच्चा खो गया दुनिया की भीड़ में कब का
 
 
हसीन ख़्वाबों की जो तितलियाँ पकड़ता था  
 
हसीन ख़्वाबों की जो तितलियाँ पकड़ता था  
 
  
 
मेरा वजूद भी शामिल था उसकी मिट्टी में
 
मेरा वजूद भी शामिल था उसकी मिट्टी में
 
 
मेरा भी खेत की फ़स्लों में कोई हिस्सा था  
 
मेरा भी खेत की फ़स्लों में कोई हिस्सा था  
 
   
 
   
 
 
हमारी ज़िन्दगी थी इक तलाश पानी की
 
हमारी ज़िन्दगी थी इक तलाश पानी की
 
 
जहान रेत का ‘द्विज’! इक चमकता दरिया था
 
जहान रेत का ‘द्विज’! इक चमकता दरिया था

11:07, 29 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

मैं ज़िन्दगी में कभी इस क़दर न भटका था
कि जब ज़मीर मुझे रास्ता दिखाता था

मशीन बन तो चुका हूँ मगर नहीं भूला
कि मेरे जिस्म में दिल भी कभी धड़कता था

वो बच्चा खो गया दुनिया की भीड़ में कब का
हसीन ख़्वाबों की जो तितलियाँ पकड़ता था

मेरा वजूद भी शामिल था उसकी मिट्टी में
मेरा भी खेत की फ़स्लों में कोई हिस्सा था
 
हमारी ज़िन्दगी थी इक तलाश पानी की
जहान रेत का ‘द्विज’! इक चमकता दरिया था