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"प्रथम प्रश्न / भाग १ / प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर

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सत्य काम, सुकेशा, भार्गव, आश्रलायन, कबंधी,
सौर्यायणी, ये छः ऋषि, वेदों के अध्ययन संबन्धी।
जिज्ञासु होकर वे ऋषि पिप्पलाद के आश्रम गए,
सब हाथ में समिधा लिए, पिप्पलाद आश्रम आ गए॥ [ १ ]

उन सुकेशा आदि ऋषियों से श्रेष्ठ मुनिवर ने कहा,
सब एक वर्ष यहॉं रहो, करो ब्रह्मचर्य का व्रत महा।
पुनि तपश्चर्या के अनंतर , प्रश्न इच्छित पूछना,
ऋत ज्ञान होगा यदि मुझे सब कहूंगा स्नेही मना॥ [ २ ]

ऋषि कत्य प्रपौत्र कबंधी ने, पूछा ऋषि पिप्पलाद से,
श्रधेय मुनिवर महिम श्रेष्ठ हे! सृष्टि किसके प्रसाद से?
नियमित चराचर जीव कैसे, कौन, कैसा विधान है?
है कौन इसका तत्व कारण, प्रश्न मेरा प्रधान है? [ ३ ]

निश्चय सृजन कर्ता प्रजाओं का प्रजापति श्रेष्ठ है,
एक रयि, एक प्राण मिलकर सृजित सृष्टि यथेष्ट है।
जग के पदार्थ हैं सब रयि, ज्ञातव्य जो दृष्टव्य है,
प्राण रयि के योग से ,निर्मित है अतिशय भव्य है॥ [ ४ ]

यह सूर्य ही है प्राण निश्चय, और रयि शुचि सोम है,
आकारमय जल, तेज, भू, व् अमूर्त वायु व्योम है।
यह पांचभौतिक तत्व जो कि मूर्त है, संसार में,
ये सब रयि दृष्टव्य जो कि मूर्त हैं आकार में॥ [ ५ ]

निशि के अनंतर सूर्य पूर्व में, उदित होता नित्य है,
चारों दिशा में रश्मियों में धारता आदित्य है।
सब प्राणियों के प्राण को, किरणों में धारण रवि करे
वह सर्व लोकों, सृष्टि की, दिनमान मुखरित छवि करे॥ [ ६ ]

जठराग्नि जो है प्राणियों में, वैश्वानर के नाम से,
वह सूर्य का ही अंश, वितरित शक्ति है रवि धाम से।
आदित्य की निष्पन्न शक्ति से, विश्व स्थिर, व्यक्त है,
आदित्य बिन निष्प्राण जग है, शक्ति इसकी अव्यक्त है॥ [ ७ ]

आधार जग का उदित रवि, अति आदि स्रोत है प्राण का,
अति तप्त ज्योति के रश्मि पुंज हे ! विश्व रूप महान का।
रवि मूल जीवन स्रोत्र इसकी, रश्मियों में प्राण हैं,
जग के सभी व्यवहार , प्राणी , सूर्य बिन निष्प्राण हैं॥ [ ८ ]