Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=पदुमलाल पन्नालाल बख्शी | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में | सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में | ||
− | |||
खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं । | खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं । | ||
− | |||
लाल उसे खाते तो यम को लजाते | लाल उसे खाते तो यम को लजाते | ||
− | |||
और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं । | और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं । | ||
− | |||
रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ | रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ | ||
− | |||
खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं । | खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं । | ||
− | |||
सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास | सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास | ||
− | |||
और लूट घन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं । | और लूट घन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं । | ||
− | + | </poem> | |
(प्रेमा, अप्रैल 1931 में प्रकाशित) | (प्रेमा, अप्रैल 1931 में प्रकाशित) |
11:49, 19 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में
खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं ।
लाल उसे खाते तो यम को लजाते
और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं ।
रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ
खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं ।
सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास
और लूट घन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं ।
(प्रेमा, अप्रैल 1931 में प्रकाशित)