भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऊधव कैं चलत गुपाल उर माहिं चल / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (२०-ऊधव कैं चलत गुपाल उर माहिं चल / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’ का नाम बदलकर ऊधव कैं चलत गुपाल उर माहिं चल / )
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
ऊधव कैं चलत गुपाल उर माहिं चल,
 
ऊधव कैं चलत गुपाल उर माहिं चल,
आतुरी मची सो परै कही न कबीनि सौं ।
+
::आतुरी मची सो परै कही न कबीनि सौं ।
 
कहै रतनाकर हियौ हूँ चलिबै कौ संग,
 
कहै रतनाकर हियौ हूँ चलिबै कौ संग,
लाख अभिलाख लै उमहि बिकलीनि सौं ॥
+
::लाख अभिलाख लै उमहि बिकलीनि सौं ॥
 
आनि हिचकी ह्वै गरै बीच सकस्यौई परै,
 
आनि हिचकी ह्वै गरै बीच सकस्यौई परै,
स्वेद ह्वैं रस्यौई परै रोम झंझारीनि सौं ।
+
::स्वेद ह्वैं रस्यौई परै रोम झंझारीनि सौं ।
 
आनन दुवार तैं उसास ह्वै बढ़्यौई परै,
 
आनन दुवार तैं उसास ह्वै बढ़्यौई परै,
आँसू ह्वै कढ़्यौई परै नैन खिरकीनि सौं ॥20॥
+
::आँसू ह्वै कढ़्यौई परै नैन खिरकीनि सौं ॥20॥
 
</poem>
 
</poem>

09:32, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

ऊधव कैं चलत गुपाल उर माहिं चल,
आतुरी मची सो परै कही न कबीनि सौं ।
कहै रतनाकर हियौ हूँ चलिबै कौ संग,
लाख अभिलाख लै उमहि बिकलीनि सौं ॥
आनि हिचकी ह्वै गरै बीच सकस्यौई परै,
स्वेद ह्वैं रस्यौई परै रोम झंझारीनि सौं ।
आनन दुवार तैं उसास ह्वै बढ़्यौई परै,
आँसू ह्वै कढ़्यौई परै नैन खिरकीनि सौं ॥20॥