"सदस्य वार्ता:महावीर जोशी पूलासर" के अवतरणों में अंतर
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+ | रचना... महावीर जोशी पूलासर |
13:25, 3 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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मोरियो पगा कानी देख गे रोवै
क्यु जी सोरो करै,
दुसरा गै घर री बाता सुण गै,
जकी बी घर मॆ हॊवण लागरी है
बा ही तॊ तॆरॆ घर मॆ हॊवॆ,
तु भीत रै चिप्यॊडॊ इनै,
बॊ ही तॊ बिनॆ चिप्यॊडॊ खड्यॊ है,
क्यु नी सॊचै तु कै ..भीता कै भी कान हॊवॆ,
आज तु सुणसी
काल बॊ तॆरी सुणसी,
क्यु सरमा मरै,
मॊरीयॊ पगा कानी दॆख गॆ रॊवै ,
ये केसा संसार है
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है,
कुछ लॊगॊ कॆ पास है हीरॆ,
कुछ रॊटी बिन बिमार है,
कहतॆ धरती मा सबकी फिर भॆद क्यु बॆसुमार है,
ममता तॆरी तु है मा फिर माता क्यु लाचार है,
सुनॆ पडॆ है महल यहा फुटपाथॊ पर भरमार है,
कुछ बन गयॆ ताज यहा,
कुछ दानॆ कॊ मॊहताज है,
खुस यहा है पैसॆ सॆ सब,
भुखॊ सॆ नाराज है,
यॆ कॆसा ससार है,
गरीब यहा लाचार है
रचना... महावीर जोशी पूलासर