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"छनो भर खातिर / लक्ष्मीकान्त मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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उनुका लगे ना रहे
 
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कौनो टाट के मड़ई
 
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बुला हो गइल रहीत मुँहलुकान
 
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10:49, 31 जनवरी 2014 का अवतरण

उनुका लगे ना रहे कौनो टाट के मड़ई आ फूंस-मूंजन के खोंता

ऊ चिरई ना रहन भा कौनो फेंड़-रूख हरवाहीं से लौटत ऊ एगो मजूर रहन

भसभसा के गिरेला जइसे पुअरा के छान्हि धमका भइला से ओही तरी लूढ़ेरा गइल रहन ऊ पोखरा के पिंड़ी पर

ओह ! छनो भर खातिर ऊखी में के लुकाइल दनवा-दूत बन के देले रहीत आपन बनूक कुछऊ बन गइल रहितन ऊ आन्ही-बुनी भा खर-पतवार तनीको देरि खातिर बुला हो गइल रहीत मुँहलुकान </poem>