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"मक्खी की निगाह / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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कितनी बड़ी दिखती होंगी,
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कितनी बड़ी दीखती होंगी मक्खी को चीजें छोटी,
मक्खी को चीजें छोटी।।
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सागर-सा प्याला भर जल, पर्वत-सी एक कौर रोटी।
सागर सा प्याला भर जल,
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पर्वत सी एक कौर रोटी।।
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खिला फूल गुलदस्ते जैसा, काँटा भारी भाला-सा,
खिला फूल गुलगुल गद्दा सा,
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तालों का सूराख उसे होगा बैरंगिया नाला-सा।
काँटा भारी भाला सा।|।
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ताला का सूराख उसे,।
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हरे-भरे मैदान की तरह होगा एक पीपल का पात,
होगा बैरगिया नाला सा।।
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पेड़ों के समूह-सा होगा बचा-खुचा थाली का भात।
हरे भरे मैदान की तरह,।
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होगा इक पीपल का पात।।
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ओस बूँद दर्पण-सी होगी, सरसों होगी बैल समान,
भेड़ों के समूह सा होगा,।
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साँस मनुज की आँधी-सी करती होगी उसको हैरान!
बचा खुचा थाली का भात।।
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ओस बून्द दर्पण सी होगी,
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सरसों होगी बेल समान।।
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साँस मनुज की आँधी सी,।
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करती होगी उसको हैरान।
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16:31, 21 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

कितनी बड़ी दीखती होंगी मक्खी को चीजें छोटी,
सागर-सा प्याला भर जल, पर्वत-सी एक कौर रोटी।

खिला फूल गुलदस्ते जैसा, काँटा भारी भाला-सा,
तालों का सूराख उसे होगा बैरंगिया नाला-सा।

हरे-भरे मैदान की तरह होगा एक पीपल का पात,
पेड़ों के समूह-सा होगा बचा-खुचा थाली का भात।

ओस बूँद दर्पण-सी होगी, सरसों होगी बैल समान,
साँस मनुज की आँधी-सी करती होगी उसको हैरान!