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"दिल को लगती है / वली दक्कनी" के अवतरणों में अंतर
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01:43, 28 जून 2008 का अवतरण
दिल को लगती है दिलरुबा की अदा
जी में बसती है खुश-अदा की अदा
गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले
क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा
हर्फ़-ए-बेजा बजा है गर बोलूँ
दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा
नक़्श-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़
हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा
गुल हुये ग़र्क आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा
ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है
मुझको उस संदली क़बा की अदा