भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"संवेदना की मौत पर / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा |संग्रह=बीत चुके शहर में / योगेंद्र कृ...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा | |रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा | ||
|संग्रह=बीत चुके शहर में / योगेंद्र कृष्णा | |संग्रह=बीत चुके शहर में / योगेंद्र कृष्णा | ||
− | }} | + | }}{{KKAnthologyDeath}} |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
अपने संपूर्ण जीवन के | अपने संपूर्ण जीवन के | ||
02:08, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
अपने संपूर्ण जीवन के
शून्य का बोझ उठाए
तुम अपनी ही जमीन पर
भारी पड़ गए हो
जमीन पर दरारें पड़ गई हैं
तिनके-तिनके
तुम्हारी जमीन पर उगे
घोंसलों से अब
चिड़ियों ने फासले बना लिए हैं
तुम्हारी चेतना पर अब
किसी पेड़ का उगना
मना हो गया है
तुम नि:शब्द
आसमान देखते हो
कि बारिश की बूंदें
तुम्हारी संवेदना पर
अब नहीं टपकतीं
तुम्हारे आंसुओं से अब
कोई बर्फ की नदी
नहीं पिघलती