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♦ रचनाकार: अज्ञात
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मति करऽ राम वियोग सिया हो, मति करऽ राम वियोग।
सुतल रहनी कंचन भवन में, सपना देखली अनमोल।
सिया हो मति करऽ राम वियोग।
अमृत फल के बाग उजरले राम लखन के दूत।
सिया हो मति करऽ राम वियोग।
पूरी अयोध्या से दोउ बालक अइले, एक सांवर एक गोर।
सिया हो मति करऽ राम वियोग।
बाग उजरले लंक जरवले, दिहले समुंदर बोर।
सिया हो मति करऽ राम वियोग।