भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शांतरस कबित्त / रसलीन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:39, 22 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
तेरेई मनोरथ को होत है सपनलोक
तूँ ही ह्वै अकास करे नखत उदोत है।
तूँ ही पाँचो तत्त्व सैल तरु पसु पंछी होत
तूँ ही ह्वै मनुख पूजे गोत अवगोत है।
तूँ ही वन नारी फिर ताके रसलीन होत
तूँ ही ह्वै के सत्रु लेत आपन तें पोत है।
जाग परै झूठो ज्यों सपन लोक होत त्योंही
आतमा बिचार लोक जागत को होत है॥1॥