भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रौढ़ा बरनन / रसलीन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:29, 22 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

चाहत सदा ही देखो तुअ मुख चंद ही को,
भरे अनुराग सों चकोर सम आँखिए।
बिन देखे लीलत अगार बिरहानल के,
चंद्रिका सी जोति बिधि आनन की चाखिए।
थाते मते कहां जौ सुजान तुम्हैं जान अब,
आइए जो मन कछू सोई अब भाखिए।
ऐसोई उपाय कीजै आवन न भानु दीजे,
दिन दाबि दूबि लीजे रैन गये राखिए॥32॥