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जाहि के सनेह नीके नेह तोरि नैहर को,
हेत सब सखिन को प्रानन तें छोलिए।
जाहि के सनेह ग्यान गुन को न ध्यान कीजे,
गर्व रूप जोबन को तिलहू न तोलिए।
जाहि के सनेह लाज छांड़ि कुल लोकन की,
छांह की सी रीति नित संग लागी डोलिए।
आली तजि मोहि मन औरै कोई नारि मोहि ,
ऐसो निरमोही सों कबहूँ नहि बोलिए॥40॥