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(राग श्याम कल्याण-ताल झूमरा)
एकार्णवकी उस अगाध जलराशि-बीच वटबृक्ष विशाल,।
दीख पड़ा उसकी शाखापर बिछा पलंग एक तत्काल।
उसपर रहा विराज एक था कमलनेत्र अति सुन्दर बाल,
देख प्रफुल्ल कमल-मुख मुनि मार्कण्डेय हो गये चकित, निहाल॥