भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कैसा समय / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
अपने लिए कोई नया और बेहतर चेहरा | अपने लिए कोई नया और बेहतर चेहरा | ||
+ | ये कैसा समय है, दोस्तो। | ||
</poem> | </poem> |
11:07, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
ये कैसा समय है, दोस्तो
कि शिनाख़्त और तसदीक के बिना
झूठीपड़ रही है हमारी नागरिकता
चौराहे पर खड़े युवा लफंगे
माँग रहे हैं सच्चे और बूढ़े आदमी से
देश के प्रति उसकी वफ़ादारी का सुबूत
ये कैसा समय है, दोस्तो
कि चौकन्ना रहना नहीं भूलता
दुख में डूबा हुआ आदमी
आसान नहीं है अब
किसी के दुख में शामिल होना
शोकसभा में अब हर बार
पहुँच जाती है लोगों से पहले
लोगों के लौटने की जल्दी
ये कैसा समय है, दोस्तो
कि फैल रही है हमारी दुनियाँ
धरती के दूसरे छोर तक
मगर हमारे कानों को सुनाई नहीं देता
बग़ल से आता हुआ आर्तनाद
लगातार तेज़ी से डूब रहे हैं
हमारे आसपास के चेहरे
और हम तलाश रहे हैं हर समय
अपने लिए कोई नया और बेहतर चेहरा
ये कैसा समय है, दोस्तो।