भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नाम की तख़्ती / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:43, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

इस घर की
खिड़की से रोज़ उतरती हैं
मेज़ पर चीटियाँ
जैसे पहाड़ से उतरते हैं लकड़हारे

इस घर के
आले में रहती है
चिड़िया और उसके दो बच्चे
वे जगाते हैं हमें काम पर जाने के लिए

इस घर में
अख़बारों की पेटी में
नियम से सोती है बिल्ली
अँधेरे के खि़लाफ़ लड़ती हुई
चौकस और चौकन्नी

इस घर में
इन सबके साथ रहते हुए
क्या यह अधूरा और बेतुका नहीं है
कि दरवाजे़ पर हो
अकेले मेरे नाम की तख़्ती।