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सूनॅ करी वृन्दावन
गेलै मनमोहन
हरि, हरि, बिलपै छै प्रान रे!
जेहे पथ हरी गैलै
दूभिया जनमि गेलै
घाट-बाट भेलै बियोबान रे॥
पिन्हले पिताम्बर
लकुट-मुकुट धर
बसिया सबद नै सुनाय रे!
बने बन गैया
खोजै छै कन्हैया
डकरि-डकरि रही जाय रे॥
नीन नहिं पल भरी
चैन नहि तिल भरी
रात भेलै बजड़ पहाड़ रे!
घॅर भेलै तन-मन
मोरा लेखें दिनमाँ अन्हार रे॥
कोय नै कदमॅ तर
झरै पात खरभर
हकनै छै जमुनारॅ कूल रे!
ब्रज के गोपिनियाँ
बनलै जोगिनियाँ
हरी भेलै डुमरीरॅ फूल रे!