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"कजली / 25 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

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गृहस्थिनी की लय

साँवरी मुरतिया नैन रतनारे, जुलुम करैं गोरिया रे तोरे जोबना
मोहत मन तोरे दाँते कै बतिसिया, करत चितचोरिया रे तोरे
देखतहीं हिय पैठत मनहुँ, कटरिया कै कोरिया रे तोरे जो।॥
रसिक प्रेमघन को मन छोरि, लेत बरजोरिया रे तोरे जो।॥

॥दूसरी॥

कारी घटा घिरि आई डरारी, दुरि-दुरि दमकै री दामिनियाँ॥
प्यारी पुरवाई सुखदाई, भाई चंचल गति गामिनियाँ॥
झिल्ली दादुर मोर पपीहा, सोर मचावैं जुरि जामिनियाँ॥
बिहरत संजोगिनी प्रेमघन बिलखत बिरही जन कामिनियाँ॥