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प्रवचन / शरद कोकास
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यह अचानक नहीं होता
कि कानों में पड़ रहे प्रवचनों के स्वर
मन को दिलासा देने लगते हैं
दिखाई देने लगते हैं
मोक्ष शब्द के विलुप्त अर्थ
मंत्रों के नाद
केवल कानों से नहीं टकराते
मन की कमज़ोर परतों पर प्रहार करते हैं
चाशनी में लिपटी आवाज़
आपकी पलकों पर अटके
आँसुओं को पहचान लेती है
हौले हौले सर थपथपाती है
गुम हो जाती है वह ताक़त
जो किसी नाजु़क पल में भी
आपको भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ती थी
दीमकें भीतर ही भीतर
खोखला कर देती हैं विश्वास
ऐसे में सुबह सुबह टी.वी. पर
एक हॉरर शो शुरू होता है
और उसके प्रसारण से पूर्व
कोई वैधानिक चेतावनी नहीं दी जाती।
-2000