फ़िराक़ गोरखपुरी
जन्म | 1896 |
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निधन | 1982 |
उपनाम | फ़िराक़ |
जन्म स्थान | गोरखपुर, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
गुले-नग़मा | |
विविध | |
फ़िराक़ साहब का मूल नाम रघुपति सहाय था। उन्हें "गुले-नग़मा" के लिये 1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। | |
जीवन परिचय | |
फ़िराक़ गोरखपुरी / परिचय |
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- निगाहें नाज़ ने पर्दे उठाए हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी
- कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम / फ़िराक़ गोरखपुरी
- रस में डूब हुआ लहराता बदन क्या कहना / फ़िराक़ गोरखपुरी
- सितारों से उलझता जा रहा हूँ / फ़िराक़ गोरखपुरी
- यह नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चिराग़ / फ़िराक़ गोरखपुरी
- शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो / फ़िराक़ गोरखपुरी
- ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की / फ़िराक़ गोरखपुरी
- अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी
- ऐ जज्बा-ए-निहां और कोई है कि वही है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी
- ग़ैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी
- जब नज़र आप की हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- कभी पाबंदियों से छूट के भी दम घुटने लगता है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- मौत इक गीत रात गाती थी / फ़िराक़ गोरखपुरी
- मुझको मारा है हर एक दर्द-ओ-दवा से पहले / फ़िराक़ गोरखपुरी
- रात आधी से ज्यादा गई थी सारा आलम सोता था / फ़िराक़ गोरखपुरी
- रात भी, नींद भी, कहानी भी / फ़िराक़ गोरखपुरी
- सकूत-ए-शाम मिटाओ बहुत अंधेरा है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं / फ़िराक़ गोरखपुरी
- ये निखतों की नर्म रवी, ये हवा ये रात / फ़िराक़ गोरखपुरी
- ये तो नहीं कि ग़म नहीं / फ़िराक़ गोरखपुरी
- थरथरी सी है आसमानों में / फ़िराक़ गोरखपुरी
- कोई नई ज़मीन हो नया आसमां भी हो / फ़िराक़ गोरखपुरी
- छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं / फ़िराक़ गोरखपुरी
- न जाना आज तक क्या शै ख़ुशी है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- हर जलवे से एक दरस-ए-नुमू लेता हूँ / फ़िराक़ गोरखपुरी
- देखते देखते उतर भी गये / फ़िराक़ गोरखपुरी
- हिंज़ाबों में भी तू नुमायूँ नुमायूँ / फ़िराक़ गोरखपुरी
- किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी / फ़िराक़ गोरखपुरी
- रुबाईयाँ / फ़िराक़ गोरखपुरी
- हमसे फ़िराक़ अकसर छुप-छुप कर / फ़िराक़ गोरखपुरी
- क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी
- न जाने अश्क से आँखों में क्यों है आये हुए / फ़िराक़ गोरखपुरी
- apna samajh baithe the hum / फ़िराक़ गोरखपुरी
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