संदीप 'सरस'
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जन्म | |
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जीवन परिचय | |
संदीप 'सरस' / परिचय |
गीत
- शारदे लेखनी में समा जाइए / संदीप ‘सरस’
- स्वाभिमान के सम्मुख मेरे / संदीप ‘सरस’
- आपस में गलबहियाँ लेकर / संदीप ‘सरस’
- कवि तुम ऐसी रचना लिखना जिसमें जीवन राग मुखर हो / संदीप ‘सरस’
- सद्भाव दया करुणा ममता का जन जन मन में हो प्रवेश। / संदीप ‘सरस’
- मुखर वेदना को सहेजकर जीना भी कैसा जीना है / संदीप ‘सरस’
- सपने तो सपने होते हैं लाखो हों चाहे इकलौता / संदीप ‘सरस’
- मैंने तेरा मन माँगा था तूने जीवन माँग लिया है / संदीप ‘सरस’
- अन्तस् की पीड़ा को गाकर / संदीप ‘सरस’
- वेदना से प्रीति की भाँवर हुई तो / संदीप ‘सरस’
- आयु गीतों की होती है कवि से बड़ी / संदीप ‘सरस’
- यूँ तो अनुमति दे देता हूँ अधरों को तुम हास सजा लो / संदीप ‘सरस’
- तेरा दोष नहीं, जाने क्यों मेरा मन भटका करता है / संदीप ‘सरस’
- नैतिकता को गिरवी रख दूँ, क्यों सच से समझौता कर लूँ / संदीप ‘सरस’
- दो घड़ी के लिए आप सो जाइए / संदीप ‘सरस’
ग़ज़लें
- हकीकत है कोई किस्सा नहीं है / संदीप ‘सरस’
- ज़माना जीत लेता है मगर घर हार जाता है / संदीप ‘सरस’
- हमेशा से ज़माने के सितम सहते चले आये / संदीप ‘सरस’
- चिर व्यथा का भार लेकर क्या करोगे? / संदीप ‘सरस’
- पेट भूखा हो, नहीं रुचता भजन, हम क्या करें? / संदीप ‘सरस’
- झुकी हुयीं बाअदब हैं आँखें / संदीप ‘सरस’
- हमें ये खाली खाली जिंदगी अच्छी नहीं लगती / संदीप ‘सरस’
- बड़ा कितना भी हो जाऊँ, वो बचपन याद आता है / संदीप ‘सरस’
- ढाक जैसे पात बनकर क्या करुँंगा / संदीप ‘सरस’