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नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 10
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कलि वर्णन-1
(83)
जागिए न सोइए, बिगोइए जनमु जायँ,
दुख, रोग रोइए, कलेसु कोह-कामको।
राजा-रंक , रागी औ बिरागी , भूरिभागी, ये,
अभागी जीव जरत, प्रभाउ कलि बामको।।
तुलसी! कबंध-कैसो धाइबो बिचारू अंध!
धंध देखिअत जग, सोचु परिनामको।
सोइबो जो रामाके सनेहकी समाधि-सुखु,
जागिबो जो जीह जपै नीकें रामनामको।।
(84)
बरन-धरमु गयो , आश्रम निवासु तज्यो,
त्रासन चकित सो परावनो परो-सो है।
करमु उपासना कुबासनाँ बिनास्यो ग्यानु,
बचन-बिराग, बेष जगतु हरो-सो है।।
गोरख जगायो जोगु, भगति भगायो लोगु,
निगम-नियोगतें सो केलि ही छरो-सो है।।
कायँ -मन-बचन सुभायँ तुलसी है जाहि,
रामनामको भरोसो, ताहिको भरोसो है।।