भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सौंधे समीरन कौ सरदार / शृंगार-लतिका / द्विज
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:20, 28 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ / श…)
किरीट सवैया
(भ्रमरावली के मुख से वसंत-महिमा का कथन)
सौंधे समीरन कौ सरदार, मलिंदन कौ मनसा-फल-दायक ।
किंसुक-जालन कौ कलपद्रुम, मानिनी-बालन हूँ कौ मनायक ॥
कंत अनंत, अनंत कलीन कौ, दीनन के मन कौ सुख दायक ।
साँचौ मनोभव-राज कौ साज, सु आवत आज इतै ऋतु-नायक ॥७॥