भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम सफ़र के वास्ते पूरी तरह तैयार थे / 'महताब' हैदर नक़वी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 23 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='महताब' हैदर नक़वी }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम सफ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम सफ़र के वास्ते पूरी तरह तैयार थे
दूर तक फैले हुए लेकिन दर-ओ-दीवार थे

लोग कहते हैं उसे परियाँ उठाकर ले गयीं
वो मेरा हमज़ाद जिसके खेल भी दुश्वार थे

धुंध मे लिपटी लकीरों से बहुत डरते थे हम
ग़ौर से देखा तो सारे रास्ते हमवार थे

बेहिसी ने सारे रोशन नक़्श धुँधले कर दिये
वरना क्या-क्या मसअले दिल के लिये आज़ार थे

एक मुद्दत हो गयी वो ख़्वाब भी देखे नहीं
अजनबी-सी आहटों के जिनमें कुछ आसार थे