भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समझौता / प्रताप सहगल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:37, 14 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल |अनुवादक= |संग्रह=अंध...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह एक बूढ़ा आदमी है
इसने देश की दिशा को बांधा है
गेरुए वस्त्रों में लिपटा
दूसरी तरह का बूढ़ा है
यह बंधे तालाब से
मछलियां पकड़ता है
उन्हें खाता है
यह जो बूढ़ा है
इसकी नसों में बहती परम्परा है

यह जो दूसरा बूढ़ा है
वह परम्परा क घोड़े पर
चढ़ा सवार है
दोनों
किसी एक बिन्दु पर मिलते हैं।
एक बेचता है परम्परा
दूसरा खरीदता है

यह जो बूढ़ा है
शायद मेरा पिता है
दूसरा जो बूढ़ा है
शायद मेरा पूर्वज है

दोनों के बीच
कहीं एक गुपचुप समझौता है
समझौते की एक चक्की में
पिस रहा है देश
पिस रहा है आदमी
पिस रहा हूं मैं!