भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माधव! करौ बचन निज याद / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:36, 17 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माधव ! करौ बचन निज याद।
आज-काल्हि करि काल बितावत, जनम जात बरबाद
मग जोहत दृग दृष्टि ग‌ई, नख कुचरत भुवि दिन जात।
दिन-दिन मास-बरस सब बीतत, निसि रोवत बिललात॥
आवैं अब, अब ही आवैंगे, यहि आसा दिन बीतै।
आवन-मिलन भ‌ए दुर्लभ, दिन बीतत रीतैं-रीतैं॥
जीवन भयौ मरन, चेतन हू भयौ अचेतन प्यारे !
तन-धन-भूषन-बसन भार ह्वै लगत अगिनि-सम सारे॥
मृदु-मधु बचन सुना‌इ, तबै तुम उपजायौ बिसवास।
अब बिस्वास-घात करि, मोकूँ ?यौं करि रहे निरास॥
बिरह-‌अगिनि अति प्रबल बरि रही, पल-पल जुग-सम जात।
अब तौ बेगि मिलौ, जीवनधन ! करि साँची निज बात॥