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एक-एक पल बना युगों-सा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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एक-एक पल बना युगों-सा दारुण पीड़ाका आगार।
आँखोंमें छायी वर्षा ऋतु, अविरत बही अश्रु-जल-धार॥
हुआ व्यथामय हृदय, कर उठे प्राण करुण-स्वर हाहाकार।
प्रियतम-विरह विषमसे सूना हुआ सहज सारा संसार॥