Last modified on 31 जनवरी 2014, at 10:50

छनो भर खातिर / लक्ष्मीकान्त मुकुल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:50, 31 जनवरी 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उनुका लगे ना रहे
कौनो टाट के मड़ई
आ फूंस-मूंजन के खोंता

ऊ चिरई ना रहन
भा कौनो फेंड़-रूख
हरवाहीं से लौटत ऊ एगो मजूर रहन

भसभसा के गिरेला
जइसे पुअरा के छान्हि
धमका भइला से ओही तरी
लूढ़ेरा गइल रहन ऊ
पोखरा के पिंड़ी पर

ओह ! छनो भर खातिर
ऊखी में के लुकाइल दनवा-दूत
बन के देले रहीत आपन बनूक
कुछऊ बन गइल रहितन ऊ
आन्ही-बुनी भा खर-पतवार
तनीको देरि खातिर
बुला हो गइल रहीत मुँहलुकान