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प्रानप्रिय मथुरा जाय बसे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्रानप्रिय मथुरा जाय बसे।
भयौ मनोरथ सफल पुरानौ हिरदै के संताप खसे॥
जद्यपि ज्वाला जरी हिये बिच स्याम-बिरह की भारी।
दियौ परम सुख तदपि स्याम-सुख-काम-जरनि कौं जारी॥
पा‌इ सुयोग्य संगिनी सुख सौं करत हो‌इँगे लीला।
बिसरि गये होंगे हरि मो कौं जो गुन-रहित असीला॥
नारायन की परम कृपा तें मन की आसा पूरी।
राधा सुखी भ‌ई अब सब बिधि करि पिय-सुख-सुध रूरी॥
काल अनंत जरौं बिरहानल, कह्यो सखिन सौं राधा।
प्रियतम सुखी रहैं, नित नव सुख-लाभ करैं बिनु बाधा॥