भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खलिहान ढोता आदमी / लक्ष्मीकान्त मुकुल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:13, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बोझा लादे
थके-थके सिर पर
पांजा भर कर लादे
मजदूर उबते नहीं इन दिनों
थक जाते हैं
खलिहान से लौटते हुए खाली हाथ
बोझों में लहसी है पूरी-की-पूरी
दुनिया मजदूर की
देखो, वह उसके साथ
कैसे खेल रहा है आइस-पाइस?
हंसिया ठिठकता है
कि कैसे
कट चुके खेत में
चलते ढेले के बीच
खूंटियां ही बची हर बार
केवल साबुत
खूंटियां चुप हैं
पौधे चुप हैं
हंसिया चुप हैं
चुप हैं सन्नाटों की तह में
मजदूर
ढोते हुए खलिहान
अपनी पीठ पर।