भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हैवी टेंक तोप के गोले / दयाचंद मायना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 4 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दयाचंद मायना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हैवी टेंक तोप के गोले, चलै सै अगन के तीर
रे मत पीठ दिखाईए, मेरी माँ के जाए वीर...टेक

खेलै जवान खून की होली, जंग बतलावैं सैं
पाकिस्तान दूसरा चीनी, संग बतलावैं सैं
म्हारे भारत का अंग बतलावै सै, जम्मू और कश्मीर...

भारत मां की लाज बचाले, ना देखै आगै-पीछै
देश की खातिर जान लुटा दे, क्यूं मुट्ठी सी भींचै
तू ले कै बम टेंक के नीचै, खो दिए सकल शरीर...

मर जाइए और मार दिए, छाती ताण-ताण कै
डरकै मुँह मत दिखलाइए उल्टा आण कै
इतनी कहकै बात बाहण कै, बहा नैन तै नीर...

एक दिन सबनै मरणा होगा, के सदा रहणा सै
तौब, रफल, तलवार, तीर मुर्दां का गहणा सै
यो ‘दयाचन्द’ का कहणा सै, पत्थर कैसी लकीर...