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पथलो काँही खैलोॅ जाय छै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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पथलो काँही खैलोॅ जाय छै
जीत्तोॅ माछ निगललोॅ जाय छै?
पढ़वैया केॅ आँख रहेॅ तेॅ
हवो लहर तक पढ़लोॅ जाय छै।
कोसो कोस ई बालुए बालू
थकलै गोड़ नै चललोॅ जाय छै।
की होतै कल भारत भर के
हिमगिरि रोज पिघललोॅ जाय छै।
आधे रस्ता पार होलोॅ छी
की रं सूरज ढललोॅ जाय छै।
सारस्वतोॅ केॅ की होलोॅ छै
वै सेॅ भी मिललोॅ जाय छै।