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कदम-कदम पर ठोकर छै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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कदम-कदम पर ठोकर छै
सबके हाथ में पत्थर छै।
माथा पर आकाश रखी ला
बरसै वाला सागर छै।
सौंसे ठो जग औला-बौला
तहियो चुप-चुप शंकर छै।
जे हाथोॅ मेॅ कलम शोभतै
ऊ हाथोॅ मॅे खंजर छै।
सारस्वते की कहते अपनोॅ
एक कहानी घर-घर छै।