भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वही लोग छै घातोॅ मेॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:25, 24 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नन्दलाल यादव 'सारस्वत' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वही लोग छै घातोॅ मेॅ
जे चल्लोॅ छै साथोॅ मेॅ।

सब जानै छै, जानी लेॅ
जोग जगै छै रातोॅ मेॅ।

जिनगी भर नै अइयैं रे
नेता जी के बातोॅ मेॅ।

बीच गंगा मॅे डूबै कम
लोग डुबै छै कातोॅ मेॅ।

सारस्वतॉे की करिये लेतै
सब डुबलोॅ मेॅ जातोॅ मेॅ।