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बोझ / शरद कोकास
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किसी के पास दो घड़ी बैठकर
वह अपने दुख बाँटना चाहता है
हालाँकि उसे पता है
दुख के पत्थरों से बंधी यह दुनिया
निराशा के गहरे सागर में
निरंतर डूबती जा रही है
फिर एक और पत्थर
दुनिया के गले में क्यों बांधा जाए।
-1997