भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अछवानी बरनन / रसलीन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:28, 23 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कैसहुँ बहू अछवानी न पीवत केतो खरी ढिग सास निहोरै।
हाथ लिये चमचा झिझकै मुख लावत ओंठ औ नाक सिकौरै।
सोंठ लगी गरवैं तबहीं भरि नैनन मैं अँसुवा मुख मोरै।
एरी लखो एहिं रूप सुहावन नारिन को मन कों यह चोरै॥93॥