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वाही घरी तें न सान रहै / दास

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वाही घरी तें न सान रहै,न गुमान रहै,न रही सुघराई.
दास न लाज को साज रहै न रहै तनको घरकाज की घाईं.
ह्याँ दिखसाध निवारे रहौ तब ही लौ भटू सब भाँति भलाई.
देखत कान्हें न चेत रहै,नहिं चित्त रहै,न रहै चतुराई.